हल्द्वानी। नशा नाश करता है, लेकिन उत्तराखंड राज्य में नशा छुड़ाने के नाम पर सर्वनाश किया जा रहा है। ताज्जुब की बात तो ये है कि सब कुछ जानने कस बावजूद प्रदेश सरकार ख़ामोश है। इसका खामियाजा जनता भुगत रही है और सरकार को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में ऐसे सिर्फ 4 नशा मुक्ति केंद्र हैं, जिन्हें सरकार ने मान्यता दी है। जिनमे से एक हल्द्वानी में, 2 पिथौरागढ़ में और 1 हरिद्वार में हैं। नियम के मुताबिक मान्यता प्राप्त नशा मुक्ति केंद्रों में भी चिकित्सक और नर्स के साथ अन्य स्टाफ का होना अनिवार्य है। जबकि प्रदेश में इन 4 मान्यता प्राप्त केंद्रों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में फर्जी तरीके से नशा मुक्ति केंद्र संचालित हैं। ऐसा भी नही है कि इनकी जानकारी संबंधित विभाग और अधिकारियों को नही हैं। बावजूद इसके कार्रवाई शून्य और सब निरंकुश हैं। समाज कल्याण विभाग के निदेशक विनोद गिरी खुद स्वीकार कर रहे हैं कि चार नशा मुक्ति केंद्रों के अलावा सब अवैध रूप से काम कर रहे हैं। हल्द्वानी के आदर्श जीवन नशामुक्ति केंद्र में हुई मरीज की मौत इस बात को साबित करती है। वहां अस्पताल के स्टाफ ने पिथौरागढ़ के एक 31 साल के मरीज को इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। तकरीबन दो साल पहले हल्द्वानी के एक और नशा मुक्ति केंद्र में भी मरीज की मौत हो चुकी है।
आपको बता दें कि ये नशा मुक्ति केंद्र तरह-तरह के नशे छुड़ाने का दावा करते हैं जिनमें शराब से लेकर स्मैक, चरस, गांजा, कोकीन, इंजेक्शन और दूसरी तरह के नशे शामिल हैं। खास बात तो यह है कि राज्य गठन के बाद इसको लेकर कोई नीति नही बनी है। जबकि नशा मुक्ति केंद्रों के लिए नीति बनाने का काम समाज कल्याण विभाग का है, लेकिन विभाग और इनके मंत्री से लेकर निदेशक तक सब बेखबर हैं।