– 17 दिन तक तपोवन में दर-दर तलाशते रहा बूढा पिता अपने बेटे को
चमोली, डीडीसी। दिन रविवार और तारीख 7 फरवरी… ये वो काला दिन था जिसे भूलना अब मुश्किल है। मुश्किल उनके लिए और ज्यादा है जिन्होंने इस आपदा के कभी न भरने वाले जख्म सहे। उत्तराखंड के तपोवन में आई जलप्रलय में कस्बे के रहने वाले थारू जाति के जोगीराम का जवान बेटा गौरी शंकर भी लापता हुआ। 7 फरवरी से ही लापता बेटे की तलाश में पिता तपोवन पहुंच गया। नदी का हर छोर, हर पत्थर के नीचे उसने अपने बेटे को तलाशा, लेकिन आपदा से जिंदा कोई नही निकला। जोगीराम मंगलवार को मायूस होकर वापस अपने घर लौट गए। चमोली में लगातार मिलती लाशों को देख हौसला और बेटे के जिंदा होने की उम्मीद टूट गई। तलाश में जुटा पिता बिना बेटे के वापस लौट गया और बेटे के नाम का पुतला बना कर उसका अंतिम संस्कार कर दिया।
3 मजदूरों के परिवार ने भी छोड़ी उम्मीद
तपोवन प्रोजेक्ट में मजदूरी करने कस्बे से गए तीन मजदूरों के शव अभी तक नहीं मिले हैं। इनमें तिकुनियां स्थित ससुराल में रह रहे शाहजहांपुर के खुटार निवासी शेर सिंह, कस्बे गौरीशंकर और रामू शामिल हैं। इनके परिवार ने उनके लौटने की उम्मीद छोड़ दी है और सब भगवान भरोसे छोड़ दिया है।
आज होंगी बाकी रस्में
जोगीराम ने लापता गौरीशंकर का पुतला बनाकर उसका अपनी बिरादरी के रीति-रिवाजों के हिसाब से अंतिम संस्कार कर दिया। बाकी रस्में आदि नाते-रिश्तेदारों के साथ 25 फरवरी को होंगी। जोगीराम ने बताया कि बेटे की तलाश में तपोवन जाने के बाद बेटे की कंपनी ने उनके रहने-खाने की व्यवस्था की और घटनास्थल भी दिखाया। वहां के हालात देखकर लगा कि सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए वह वापस घर आ गए हैं।
अब तो सरकार भी मृत्यु प्रमाण पत्र देने को कह रही है
सत्रह दिन बाद भी बेटे का कोई सुराग न लगने पर उनके समेत परिवार के लोगों ने उसके जीवित मिलने की उम्मीद छोड़ दी है। बेहद दुखी मन से जोगीराम का कहना था कि अब नहीं लगता कि तपोवन की रेत में खोया उनका लाडला वापस मिल सकेगा। इतने दिनों से सैलाब के थपेड़ों की मार खाकर कोई कैसे जिंदा रह पाएगा। घरवालों ने यह भी बताया कि वहां की सरकार ने लापता लोगों के परिवारवालों को मृत्यु प्रमाणपत्र देने की बात कही है।
कंपनी ने की अंतिम संस्कार के लिए मदद
जिस कंपनी में वह काम कर रहा था, उस कम्पनी ने जोगीराम को दाह संस्कार के लिए 10 हजार रुपए दिए हैं। गौरीशंकर की मां मीना देवी ने बताया कि 25 फरवरी को रोटी में भोजन-भंडारा व दान पुण्य किया जाएगा। जोगीराम ने बताया कि वह रोज शाम वह फोन से परिवारवालों को अपनी दिनभर की भागदौड़ के बावजूद नाकामी हाथ लगने की खबर सुनाते थे। इसी वजह से घरवालों के कहने पर वह मंगलवार को वापस आ गए।