
– दीपावली से पहले तेज हो जाता है उल्लू का शिकार, लगाए जाते हैं ऊंचे दाम
सर्वेश तिवारी, डीडीसी। दीपावली भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी में मनाया जाता है। उस रोज अयोध्या को दीपों से रोशन किया गया था, लेकिन दीपावली के कई और अहम मायने हैं। माना जाता है कि दीपावली की रात तंत्र-मंत्र सिद्धी के लिए सबसे माकूल वक्त है। दीपावली से पहले उल्लुओं का शिकार तेजी से बढ़ता है और उल्लुओं के अवैध बाजार में इनकी बड़ी कीमत लगती है। माना जाता है कि तंत्र-मंत्र सिद्धी के लिए किया जाना वाला पूजन बिना उल्लू के पूरा नही हो सकता। इस वक्त उल्लू 15 से 20 हजार में बिकता है।
तंत्र साधना की किताब में उल्लू का जिक्र
तंत्रसाधना की कई किताबों में उल्लुओं पर साधना की विधि का सविस्तार वर्णन मिलता है। दीवाली की रात उल्लू पर तंत्र क्रिया करने के लिए उसे लगभग महीनाभर पहले से साथ रखा जाता है। उसे मांस-मदिरा दी जाती है। तब जाकर दिवाली पर इनकी बलि दी जाती है। बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है ताकि समृद्धि को पूरी तरह से छेका जा सके।
तिजोरी में रखे जाते हैं उल्लू के पैर
माना जाता है कि उसकी आंखों में सम्मोहित करने की ताकत होती है, लिहाजा उल्लू की आंखें ऐसी जगह रखते हैं जहां मिलना-मिलाना होता हो। पैर तिजोरी में रखा जाता है। चोंच का इस्तेमाल दुश्मनों को हराने के लिए होता है। वशीकरण, मारण जैसी कई तांत्रिक क्रियाओं के लिए उल्लुओं का इस्तेमाल होता है।
साधना में जरूरी होता है उलूक तंत्र
तांत्रिक साधना के लिए बनी किताबों में उलूक तंत्र का जिक्र मिलता है। उसपर पर कई कहानियां है, जिनमें से खास प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार हरिद्वार में राजा दक्ष ने यज्ञ किया था। इसमें उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया था। शिव की उपेक्षा पर भगवान विष्णु भी क्रोधित हुए और उन्होंने ब्राह्मणों को विद्याविहीन होने का शाप दे दिया। इससे नाराज़ भृगु ॠषि ने विष्णु की छाती पर पांव रख दिया। यह देखकर लक्ष्मी ने ब्राह्मणों को धन-धान्य से विमुख होने का शाप दे दिया। इस शाप से बचाव के लिए गौतम ॠषि ने उलूक तंत्र का आविष्कार किया। इससे प्रसन्न होकर लक्ष्मी और विष्णु ने उन्हें अपने शाप से मुक्त कर दिया। इसके बाद से ही गौतम गोत्र के लोग दिवाली पर उल्लू की पूजा करते हैं।
इन उल्लुओं की दिवाली में सबसे ज्यादा मांग
वाइल्ड लाइफ एसओएस के आंकड़ों के अनुसार रॉक आउल या ईगल आउल की दिवाली के दौरान सबसे ज्यादा मांग रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि इनमें तांत्रिक शक्तियां होती हैं और घर या व्यावसायिक संस्थान के भीतर इनकी बलि से सुख-समृद्धि हमेशा के लिए पैर तोड़कर वहीं ठहर जाती है। यही वजह है कि दिवाली के कुछ दिन पहले से ही अवैध पक्षी विक्रेता एक-एक उल्लू को 15-20 हजार में बेचते हैं। इस पक्षी के वजन, उसके रंग और दूसरी विशेषताओं को देखकर दाम तय होता है।
उल्लू की बलि से हमेशा के लिए घर मे बस जाती हैं लक्ष्मी
हिंदू मान्यताओं की मानें तो मां लक्ष्मी उल्लू की सवारी करती हैं, वहीं कहीं-कहीं इसका भी जिक्र मिलता है कि उलूकराज लक्ष्मी के सिर्फ साथ चलते हैं, सवारी तो वो हाथी की करती हैं। बहरहाल, मान्यताएं चाहे जितनी अलग बातें कहें, दीवाली से उल्लुओं का गहरा ताल्लुक जुड़ गया है। माना जाता है कि दीवाली के रोज उल्लू की बलि देने से लक्ष्मी जी हमेशा के लिए घर में बस जाती हैं।
पुराणों में भी जिक्र है उल्लुओं का
उल्लुओं के धन-समृद्धि से सीधे संबंध या शगुन-अपशगुन को लेकर ढेरों किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। मुश्किल से मुश्किल हालातों में आखिरी समय तक सर्वाइव कर पाने वाला ये पक्षी अपनी इसी विशेषता के चलते पुराणों के अनुसार तंत्र साधना के लिए सबसे उत्तम माना गया है।
दुर्भाग्य का प्रतीक भी है लक्ष्मी की बहन उल्लू
बड़ी-बड़ी आंखों वाला निरीह सा ये पक्षी हिंदू विश्वासों से सीधा जुड़ा हुआ है तो इसकी बड़ी वजह उसकी विशेषताएं हैं। चूंकि ये निशाचर है, एकांतप्रिय है और दिनभर कानों को चुभने वाली आवाज निकालता है। इसलिए इसे अलक्ष्मी भी माना जाता है यानी लक्ष्मी की बड़ी बहन, जो दुर्भाग्य की देवी हैं और उन्हीं के साथ जाती हैं। जिसके पूर्वजन्मों का हिसाब चुकाया जाना बाकी हो। एक मान्यता है कि लक्ष्मी का जन्म अमृत और उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी का जन्म हालाहल यानी विष से हुआ था।
लॉर्ड विद सर्कुलर आईज़ है उल्लू
उल्लू की गोल आंखें हमेशा स्थिर रहती हैं, इसकी वजह से इसे बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना गया है। प्राचीन ग्रीस में इसे एथना यानी बुद्धि की देवी का प्रतीक माना गया है। उड़ीसा के पुरी में इसे लॉर्ड विद सर्कुलर आईज़ भी कहा जाता है जो चोका-ढोला के रूप में भगवान की तरह पूजा जाता है।
घर आए उल्लू को भगाया नही जाता
दीवाली के साथ उल्लुओं के संबंध पर भी विभिन्न मान्यताएं हैं। पुराणों में इसका जिक्र मिलता है कि मां लक्ष्मी विशालकाय सफेद उल्लू पर विराजती हैं। यही वजह है कि किसी भी बंगाली घर में जाएं, वहां घर आए उल्लू को कभी भी उड़ाया नहीं जाता चाहे वो कितनी ही तीखी आवाज निकालता रहे। खासकर सफेद उल्लू को वहां खास मेहमान की तरह देखा जाता है, जिसका लक्ष्मी जी से सीधा ताल्लुक है।
उल्लू को पकड़ना और बेचना अपराध
भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू संरक्षित पक्षियों के तहत आता है और उसे पकड़ने-बेचने पर तीन साल या उससे ज्यादा की सजा का नियम है लेकिन दिवाली पर इस प्रावधान की जबर्दस्त अनदेखी होती है।