– आज पहुंचेगे हरिद्वार, कल स्नान के बाद जाएंगे देहरादून
हरिद्वार, डीडीसी। नेपाल के आखिरी हिन्दू राजा ज्ञानेंद्र वीर सिंह शाह (Raja Gyanendra Veer Singh Shah), जिनका जीवन उथल-पुथल से भरा रहा। पहले उन्हें मौजूदा राजा का दुर्भाग्य माना गया और उन्हें परिवार ने छोड़ दिया। नरसंहार के बाद उन्हें गद्दी मिली। अब नेपाल के आखिरी हिन्दू राजा ज्ञानेंद्र उत्तराखंड (Uttarakhand) के हरिद्वार चल रहे कुंभ मेले में आस्था की डुबकी लगाने आ रहे हैं। वो साधु-संतों के साथ शाही स्नान भी करेंगे। ज्ञानेंद्र वीर सिंह शाह आज सुबह 9 बजे कुंभ नगरी पहुंचेंगे और दक्षिण काली मंदिर (Dakshin Kali Temple) भी जाएंगे। 12 अप्रैल को शाही स्नान के बाद वे देहरादून जाएंगे।
नरसंहार के बाद मिली ज्ञानेंद्र को गद्दी
नेपाल में राजपरिवार के शासन का सिलसिला काफी पुराना है। यहां पर एक ही राजपरिवार शाह वंश के सदस्यों का शासन रहा, जो कि खुद को प्राचीन भारत के राजपूतों का वंशज मानते थे। माना जाता है कि इन्होंने साल 1768 से साल 2008 तक देश पर शासन किया। हालांकि साल 2001 के जून में यहां रॉयल पैलेस के भीतर ही नरसंहार हुआ, जिसमें परिवार के 9 सदस्य मारे गए। काठमांडू स्थित नारायणहिति राजमहल में अंदरुनी अनबन की वजह से गुस्साएं क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने गोलियों की बौछार कर सबको मार डाला था। इसके तुरंत बाद क्राउन प्रिंस के चाचा ज्ञानेन्द्र शाह राजगद्दी पर बैठे। हालांकि साल 2008 में राज-तंत्र खत्म कर दिया गया और 28 मई को देश को Federal Democratic Republic घोषित कर दिया गया। इसके तुरंत बाद पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को राजमहल खाली करने को कहा गया। बदले में कुछ समय के लिए वे नागार्जुन पैलेस में रहे। इस पैलेस में पहले राजपरिवार गर्मी की छुट्टियां बिताने आया करता था। अब यहीं पर वे स्थाई तौर पर रहने लगे हैं।
3 साल की उम्र में बने नेपाल के राजा
साल 1955 से 1972 तक नेपाल पर राज करने वाले महेन्द्र वीर बिक्रम शाह की संतान ज्ञानेन्द्र वीर बिक्रम शाह का जीवन गद्दी के मामले में हमेशा से ही उथल-पुथल से भरा रहा। जब पहली बार उन्हें नेपाल का शासक घोषित किया गया, तब उनकी उम्र महज 3 साल थी। ये साल 1950 की बात है, जब राजनैतिक अस्थिरता के कारण बच्चे ज्ञानेंद्र को पूरे एक साल के लिए देश का राजा घोषित कर दिया गया। ज्ञानेन्द्र की दूसरी पारी शाही परिवार की हत्या के बाद शुरू हुई, जो 2001 से लेकर 2008 तक चली। इस दौर को दुनिया के आखिरी हिंदू राजा का दौर माना जाता है जो नेपाल में लोकतंत्र के साथ ही खत्म हो गया।
राजा के लिए दुर्भाग्य माने गए ज्ञानेंद्र
ज्ञानेंद्र का बचपन काफी अकेलेपन में बीता। क्राउन प्रिंस महेंद्र की दूसरी संतान ज्ञानेंद्र के जन्म पर राजपरिवार के ज्योतिष ने राजा से कहा कि उनका इस संतान के साथ रहना दुर्भाग्य ला सकता है। ये सुनते ही शिशु ज्ञानेंद्र को नारायणहिति राजमहल से उसकी नानी के पास रहने के लिए भेज दिया गया। जब ज्ञानेंद्र 3 ही साल के थे, तब राजनैतिक हलचल के कारण पूरा राजपरिवार राजसी खानदान के इस अकेले बच्चे को छोड़कर भारत आ गया। तब राजपरिवार का अकेला पुरुष सदस्य होने के कारण 3 साल के बच्चे को ही देश का राजा मान लिया गया। तब बालक ज्ञानेंद्र के नाम पर ही सिक्के निकले, जिसपर नेपाल के नए राजा यानी ज्ञानेंद्र की तस्वीर थी। किंग को उस दौर में अपने खर्च के लिए 3,00,000 रुपए मिलते थे। सालभर बाद ज्ञानेंद्र का परिवार लौट आया और सत्ता वापस त्रिभुवन के हाथ में चली गई।