– विश्व श्रम संगठन के आंकड़ों ने भारत को पिछड़े देशों के साथ खड़ा किया

नई दिल्ली, डीडीसी। भारत दुनिया की सबसे तेज उभरती अर्थ व्यवस्था है। भारत जिसकी छवि विश्व गुरु वाली है। विश्व गुरु और सबसे तेज उभरती अर्थ व्यवस्था वाला भारत आज विश्व के उन गरीब देशों के साथ खड़ा है, जहां नौकरीपेशा से मेहनत तो खूब कराई जाती है, लेकिन मेहनताना सबसे कम दिया जाता है। कम से कम विश्व श्रम संगठन की रिपोर्ट तो कुछ ऐसा ही कह रही है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारत में बेरोजगारों की फौज है और जो नौकरी कर रहे हैं उन पर काम का बोझ दुनिया में सबसे ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक भारतीय कामगार हफ्ते में औसतन 48 घंटे काम करते हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है।

पड़ोसी चीन में भी दुश्वारियां कम नही
भारत का पड़ोसी देश चीन आज विश्व के ताकतवर और अमीर देशों की सूची में शुमार है, लेकिन नौकरीपेशा और नौकरीपेशा को मेहनताना देने के मामले में चीन भी उन गरीब देशों की सूची में खड़ा है, जिसमें भारत। आंकड़ों पर गौर करें तो जहां भारत में मेहनतकश हफ्ते में 48 घंटे काम करता है तो वहीं चीन के कर्मचारी मात्र 2 घंटे कम 46 घंटे हफ्ते में काम करते हैं। इसी तरह अमेरिका में 37 घटें, ब्रिटेन में 36 घंटे और इजरायल में भी कर्मचारी 36 घंटे ही काम करते हैं।

काम ज्यादा और वेतन सबसे कम
आंकड़ों में बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई है। आप यदि यह सोंच रहे हैं कि भारतीयों को अधिक काम के बदले भुगतान भी ज्यादा होता होगा तो आप गलत हैं। अधिक काम करने के बावजूद भारतीय सबसे कम भुगतान या मेहनताना पाने वालों में शामिल हैं।

जांबिया और मंगोलिया की श्रेणी में भारत
भारत में कर्मचारियों पर काम का दबाव बहुत ज्यादा है। काम के दबाव के मामले में भारत जांबिया, मंगोलिया, मालदीव और कतर जैसे देशों की श्रेणी में खड़ा है। जांबिया और मंगोलिया की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है। जबकि भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।

इजरायली कर्मचारियों से 12 घंटे ज्यादा काम करते हैं भारतीय
इजरायल के कर्मचारियों के मुकाबले भारतीय हफ्ते में 12 घंटे ज्यादा काम करते हैं। जबकि अमेरिका के मुकाबले भारत में कर्मचारी हर हफ्ते औसतन 11 घंटे ज्यादा काम करते हैं। ब्रिटेन के मुकाबले भारतीय 12 घंटे अधिक और चीन की अपेक्षा भारतीय महज दो घंटे ज्यादा काम करते हैं।

बेरोजगार है युवा भारत
भारत में मौजूदा समय में कामगार काम के बोझ तले दबे जा रहे हैं। वहीं युवाओं की एक बड़ी आबादी बेरोजगार है। इसमें मिलेनियल यानी 1980 के बाद पैदा हुए लोग शामिल हैं। भारत को युवाओं का देश माना जाता है और यहां की 35 फीसदी आबादी युवा है। लेकिन काम नहीं होने से यह वर्ग मुश्कलों से गुजर रहा है।

अधिक काम या बेहतर काम
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेषज्ञ आंकड़ो के विश्लेषण के जरिये यह समझ पाने की कोशिश कर रहे हैं कि अधिक काम महत्वपूर्ण है या बेहतर काम। इसमें कहा गया है कि श्रम कानून सख्त होने से कंपनियां कई बार चाह कर भी कम क्षमता वाले कर्मचारी को हटा नहीं पाती हैं। इसकी वजह से वह नई नियुक्तियां भी कम करती हैं।

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