– 70 की उम्र में हरीश रावत ने जोर तो लगाया, लेकिन गुटबाजी से नहीं उभरी कांग्रेस
सर्वेश तिवारी, डीडीसी। उत्तराखंड को राजनीति में यशपाल आर्य बड़ा चेहरा हैं। कांग्रेस से भाजपा की गोद में और चुनाव से ऐन पहले दोबारा हाथ से हाथ मिलाकर कर यशपाल ने कांग्रेस को तो जरूर मजबूत किया, लेकिन खुद कमजोर पड़ गए। ये तय नही हो पा रहा है कि यशपाल किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन जिस सीट से भी उनके लड़ने की चर्चा हो रही है वहीं से उनका विरोध शुरू हो रहा है। आलम ये है कि बैठकों का दौर शुरू हो गया है और यशपाल की खिलाफत के लिए उन्हीं की पार्टी के नेता काले झंडे से डंडे तक लेकर खड़े हो गए हैं। इसकी बड़ी वजह दलबदल की राजनीति (Defection Politics) है।
यशपाल के खिलाफ बाजपुर में चीनी मिल में लामबंद हुए कांग्रेसी
विधानसभा क्षेत्र बाजपुर के चीनी मिल गेस्ट हाउस में पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के करीबी रहे और पूर्व जिला पंचायत सदस्य कुलविंदर सिंह ने आर्य के विरोध में बैठक कर साफ तौर पर चेतावनी दी कि अगर आर्य को कांग्रेस पार्टी ने बाजपुर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तो काले झंडे और डंडे से उनका विरोध किया जाएगा।
दो बार बाजपुर से जीत चुके हैं यशपाल
पिछले दिनों बीजेपी और मंत्री पद छोड़कर कांग्रेस में लौटे आर्य पहले दो बार बाजपुर सीट से जीत हासिल कर चुके हैं और पूरी संभावना है कि पार्टी एक बार फिर उन्हें इसी सीट से टिकट देगी, लेकिन विधानसभा चुनाव 2022 से पहले स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता उनसे नाराज़ दिख रहे हैं। हालांकि इन्हें मनाने की तैयारी भी चल रही है।
यशपाल के काफी करीबी हैं उनका विरोध करने वाले
कांग्रेस में गुटबाज़ी नई बात नही है। गुटबाज़ी का ही नतीजा था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तराखंड में करारी हार का सामना करना पड़ा था। अब आगामी विधानसभा चुनाव के नज़दीक आते ही पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद बाजपुर में गुटबाज़ी फिर से सामने आ गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में आर्य के करीबी रहे पूर्व जिला पंचायत सदस्य कुलविंदर सिंह किंदा ने ही आर्य का विरोध शुरू कर दिया है। इसी के चलते बाजपुर के चीनी मिल गेस्ट हाउस में एक बैठक आयोजित की गई।
आर पार की लड़ाई के मूड में कांग्रेसी
इस बैठक में बाजपुर के कई ग्राम प्रधान, बीडीसी और छात्रसंघ पदाधिकारियों ने यशपाल आर्य के बाजपुर से चुनाव लड़ने पर विरोध करने की रणनीति बनाई। इस दौरान किंदा ने कहा कि बाजपुर की जनता ने आर्य पर भरोसा कर उन्हें दो बार जीत दिलाई, लेकिन लगातार आर्य ने पार्टी बदलकर बाजपुर की जनता के साथ धोखा किया। यदि इस बार आर्य बाजपुर से चुनाव लड़े तो काले झंडों और डंडों के साथ जमकर विरोध किया जाएगा और आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी।
जिनके खिलाफ रणनीति बनाई, अब उनके समर्थन कि मजबूरी
कार्यकर्ताओं के सामने यह संकट बन गया है कि जिस नेता के खिलाफ वो सालों से ज़मीन तैयार कर रहे थे, अब उसका ही समर्थन करना पड़ रहा है। वहीं, टिकट की राजनीति भी नेताओं व कार्यकर्ताओं का सिरदर्द बनती दिख रही है। पिछले दिनों BJP और मंत्री पद छोड़कर कांग्रेस में लौटे यशपाल आर्य के खिलाफ कभी उनके करीबी रहे नेता ही लामबंद हो गए हैं।
हल्द्वानी सीट से भी लड़ने की चर्चा
यशपाल कहां से लड़ेंगे, अभी ये साफ नही है और साफ ये भी नही है कि हल्द्वानी सीट से दावेदार कौन है। हालांकि इंदिरा हृदयेश की मौत के बाद उनके बेटे सुमित हृदयेश को उनकी राजनीतिक विरासत का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन अब माहौल बदल चुका है। हल्द्वानी सीट पर पुराने कांग्रेसी और राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी ने भी दावा ठोंका है। जबकि एक और दावेदार ने पैसों के बूते शहर को अपने चेहरे वाले होर्डिंग्स से पाट दिया है। सुमित मां की राजनीतिक जमीन विरासत पर पहले ही दावा मान चुके हैं। अब इन सबके बीच यशपाल की सुगबुगाहट क्या गुल खिलाती है, ये आने वाला वक्त तय करेगा।