– कांवड़ यात्रा को लेकर है प्रचलित हैं कई कथाएं
सर्वेश तिवारी, डीडीसी। बदन गेरुए वस्त्र से सजा हुआ और कांधे पर कांवड़। पैदल शिव भक्तों का जत्था सैकड़ों किलोमीटर सफर करता है वो भी अपने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए। भक्त गंगा के जल से कांवड़ भरकर फिर सैकड़ों किमी पैदल सफर कर भोले के दरबार पहुंचते हैं। गंगा जल से भक्त भोले का जलाभिषेक करते हैं। इतनी कठिन यात्रा के बाद अक्सर मस्तिष्क में सवाल कौंधता है कि आखिर कौन है वो पहला शिव भक्त जिसने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की। इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। तो आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा की शुरुआत आखिर भोले के किस भक्त ने की थी?
शिव को विष के प्रभाव से बचाया था रावण ने
पुराणों के अनुसार कावड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया।तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
क्या त्रेता युग में हुई थी यात्रा की शुरुआत
वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
भगवान राम ने भी किया था जलाभिषेक
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
या परशुराम थे पहले कावड़िया
कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।