. उम्र कैद की सजा पाए एक जिंदा अपराधी अफजाल का डेथ सर्टिफिकेट बनने के बाद खुली कब्रिस्तान कमेटी की कलई
Made a death certificate of a living criminal, DDC : उत्तराखंड में नैनीताल जिले के हल्द्वानी से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। यहां अदालत ने जिसे उम्र कैद की सजा सुनाई, वो कागजों में मर गया। यानि जेल में उम्र गुजारने के झंझट से बच गया। ऐसे ही जाने कितने जिंदा लोगों को कब्रिस्तान कमेटी में शामिल पिता-पुत्र ने कब्र में जिंदा दफना दिया, लेकिन उम्र कैद की सजा काट रहे अफजाल का मामला खुला तो जिंदा को मुर्दा दिखाने के खेल की कलई खुल गई। पुलिस का मानना है कि इन पिता-पुत्र ने मिलकर ऐसे कई जिंदा अपराधियों का डेथ सर्टिफिकेट बनाकर उन्हें वापस जेल जाने के झंझट से मुक्ति दिलाई है। पुलिस का कहना है कि वह बनभूलपुरा में के कब्रिस्तान में ऐसी सारी कब्रों को खोदेंगे, जो जिंदा लोगों के नाम पर बना डाली गईं।
बनभूलपुरा में जिंदा को मुर्दा दिखाने का खेल तब खुला जब एक जिंदा आदमी लाइन नंबर 12 बनभूलपुरा निवासी अफजाल पुलिस के पास पहुंचा। मूलरूप से बिजनौर उत्तर प्रदेश का रहने वाला अफजाल यहां परिवार के साथ रहता है और वर्ष 2012 में बनभूलपुरा में हुई एक हत्या के मामले में उसे उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि कब्रिस्तान कमेटी में शामिल इकबाल अंसारी और उसके बेटे तनवीर उर्फ सादिक ने अफजाल की मां से संपर्क किया। उन्हें बताया कि अगर वह अफजाल का डेथ सर्टिफिकेट बना लेते हैं तो जमानत पर बाहर अफजाल को दोबारा जेल नहीं जाना पड़ेगा।
पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो पता लगा कि जालसाज पिता-पुत्र ने बनभूलपुरा क्षेत्र के पूर्व पार्षद सबूर कबाड़ी के बेटे का भी डेथ सर्टिफिकेट बनाया था। जबकि उसकी मौत दिल्ली में एक सड़क हादसे में हुई थी और उसे दफनाया भी वहीं गया था। इसके अलावा अफजाल के पिता सैयद शाने अली का डेथ सर्टिफिकेट बनाया, जिसकी मौत बरेली में हुई और उसे दफनाया भी वहीं गया। यह सारा खेल पिता-पुत्र ने पैसों के लिए खेला और पुलिस का मानना है कि ऐसे मामलों की संख्या कहीं अधिक हो सकती है। एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा ने बताया कि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जिंदा लोगों को मुर्दा दिखाने का खेल लंबे समय से चल रहा है। हमारी टीम इसकी जांच कर रही है और इसमें शामिल किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस के रडार पर पार्षद और पटवारी
पुख्ता नहीं है, लेकिन बताया जा रहा है कि डेथ सर्टिफिकेट के जो तीन मामले सामने आए हैं, उनमें एक डेथ सर्टिफिकेट वर्ष 2014 में बनाया गया। ऐसे में यह पुख्ता है कि डेथ सर्टिफिकेट के लिए फर्जी रसीदें काटने का खेल सालों-साल से चल रहा है। इसके बाद कई पार्षद और बनभूलपुरा क्षेत्र का पटवारी भी पुलिस के रडार पर है। दरअसल, बिना पार्षद की सहमति और पटवारी की रिपोर्ट के डेथ सर्टिफिकेट नहीं बन सकता। ऐसे में जाहिर है कि पार्षद की दस्तखत के बाद पटवारी ने बिना जांच किए ही फाइल आगे बढ़ा दी।
शपथ पत्र की आड़ में सुरक्षित नगर निगम
इस पूरे प्रकरण में डेथ सर्टिफिकेट जारी करने वाला नगर भी सवालों के घेरे में है। हालांकि नगर निगम ने उस शपथ पत्र की आड़ ले ली है, जिसे डेथ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करने वाला अन्य दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत करता है। इस शपथ पत्र में लिखा होता है कि सर्टिफिकेट आवेदक द्वारा दिए गए दस्तावेजों के आधार पर बनाया गया है।
ऐसे में नगर निगम भले ही सवालों के घेरे में हो, लेकिन उसने खुद को पाक-साफ बचा लेने का रास्ता खोज लिया है। अगर बात नियमों की करें तो पैदा होने या मरने के 21 दिन में आवेदन करने पर पार्षद का लेटर पैड और अस्पताल के कागज चाहिए होते हैं। 21 से ज्यादा और एक साल से कम अवधि होने पर शपथपत्र, एक साल से ज्यादा होने पर फाइल एसडीएम कार्यालय, तहसीलदार और पटवारी और फिर राजस्व विभाग की रिपोर्ट के बाद नगर निगम सर्टिफिकेट जारी करता है।
कब्रिस्तान कमेटी भी फर्जी, मौत की रसीद भी फर्जी
पुलिस का कहना है कि जांच में यह पता लगा है, कब्रिस्तान की कमेटी भी फर्जी है। पिछले कुछ समय से कमेटी पर दावे को लेकर दो पक्षों में वर्चस्व की जंग चल रही है। यही वजह है कि कब्रिस्तान कमेटी का पंजीकरण तक नहीं कराया गया। वर्चस्व की इस जंग में फिलहाल पिता-पुत्र की जोड़ी आगे रही और उसने कमेटी पर अपना कब्जा बरकरार रखा। इसी जंग की चलते कमेटी का पंजीकरण भी नहीं कराया है। हालांकि अब पुलिस कमेटी के दस्तावेज खंगाल रही है कि यहां से अब तक कितने लोगों के डेथ सर्टिफिकेट की रसीद काटी गई।