– मंगलवार 18 जुलाई को मुकेश बोरा के प्रार्थना पत्र पर न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा ने की सुनवाई
Mukesh Bora absconding again, DDC : भाजपा से निष्कासित नैनीताल दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा के सिर पर फिर गिरफ्तारी की तलवार लटक चुकी है। मंगलवार 18 सिंतबर को मुकेश बोरा के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने प्रार्थना पत्र खारिज करते हुए कहा, मुकेश बोरा राहत के लायक नहीं है। ऐसे जघन्य अपराधों के आरोपी को अंतरिम राहत देने से मुकदमे की विवेचना में बाधा पुहंच सकती है और वह सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है।
बता दें कि लालकुआं निवासी एक विधवा ने मुकेश बोरा पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए एक सितंबर को लालकुआं कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था। जिसके बाद पीड़िता की नाबालिग बेटी से भी छेड़छाड़ का आरोप लगा और मुकदमे में पॉक्सो की धारा बढ़ा दी गई। आरोप लगाने वाली महिला दुग्ध संघ में आउटसोर्स के जरिये नौकरी पर आई थी, जिसे मुकेश परमानेंट करने का झांसा दे रहा था और इसी झांसे की आड़ में उसने पीड़िता ने दुष्कर्म किया।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की एकलपीठ ने मंगलवार को आरोपी मुकेश बोरा के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद एकलपीठ ने मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। बुधवार को कोर्ट ने अपने निर्णय में आरोपी को इस मामले में राहत देने योग्य नहीं माना। कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मुकदमे को जघन्य अपराध करार देते हुए कहा, इसमें आरोपी को गिरफ्तारी से राहत देने से मुकदमे की विवेचना में बाधा पहुंच सकती है। साथ ही आरोपी मामले के सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है।
हाईकोर्ट ने दी थी राहत, हाईकोर्ट ने छीन ली
मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस लगातार मुकेश की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही थी। कुर्की के नोटिस के बाद गैर जमानती वारंट भी जारी कर दिया गया था, लेकिन मुकेश हाथ नहीं आया। 13 सितंबर को हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने अंतरित राहत देते हुए बोरा की गिरफ्तारी पर 17 सितंबर तक रोक लगा दी थी।
कोर्ट में नहीं टिकी मुकेश बोरा की दलील
गिरफ्तारी से राहत देने के साथ कोर्ट ने मुकेश बोरा को हर रोज अल्मोड़ा कोतवाली में उपस्थिति दर्ज कराने और पुलिस जांच में सहयोग के आदेश दिए थे। इसके बाद न्यायाधीश न्यायामूर्ति विवके भारती शर्मा की एकपीठ ने 17 सितंबर को मामले में सुनवाई की। मुकेश बोरा के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि मुकेश बोरा को झूठा फंसाया गया हैऔर वह पुलिस जांच में सहयोग कर रहे हैं। जबकि सरकार और पीड़िता की ओर से बताया गया कि आरोपी ने अब तक वह मोबाइल नहीं दिया है, जिससे उसकी पीड़िता के साथ बात होती थी।
इसके अलावा काठगोदाम के होटल के एंट्री रजिस्टर में किए गए बोरा के हस्ताक्षरों का मिलान किया जाना है। इसके लिए को गिरअफतार किया जाना आवश्यक है। इस आधार पर कोर्ट ने बोरा की गिरफ्तारी पर रोक और लालकुआं कोतवाली में बोरा के खिलाफ दर्ज मुकदमे को निरस्त करने को लेकर दायर याचिका खारिज कर दी है।