बाबा नीब करौली : बालकाल्य से ब्रह्मलीन होने तक की कहानी

– उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा का बाबा नीब करौली बनने का सफर

Neem Karoli Baba, DDC : बाबा नीब करोली के भक्त सात समंदर पार तक हैं। ऐसे भक्त जिनके पास न तो प्रसिद्धी की कमी है और न धन की। ये वो भक्त हैं, जिन्हें भगवान ने इतना दिया कि उन्हें खुद नहीं पता उनके पास संपत्ति कितनी है। फिर मार्क जुकरबर्ग हो, अमेरिक बिजनेस टाईकून स्टीव जॉब्स या फिर हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स। बाबा को तो पूरी दुनिया जानती है, लेकिन आप बाबा को कितना जानते हैं। क्या आपको पता है कि वो कहां जन्में, कहां ब्रह्मलीन हुए और आखिर कभी लक्ष्मी नारायण शर्मा के नाम से जाना जाने वाला एक लड़का कैसे बाबा नीब करौली बन गया। तो आइए जानते हैं बाबा के बारे में सबकुछ।

20वीं शताब्दी के महान संतो में होती है गणना
नीब करौरी बाबा या नीम करौरी बाबा या महाराजजी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है। बाबा नीब करोली या लक्ष्मी नारायण शर्मा का जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश है, जो कि हिरनगांव से एक किलोमीटर मीटर दूरी पर है। बाबा का प्रसिद्ध कैंची धाम, नैनीताल जिले के भवाली से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। कैंची मन्दिर में प्रतिवर्ष 15 जून को वार्षिक समारोह मानाया जाता है।

बाबा नीब करौली महाराज की युवास्था का चित्र, तब उन्हें लक्ष्मी नारायण शर्मा के नाम से जाना जाता था।
बाबा नीब करौली महाराज की युवास्था का चित्र, तब उन्हें लक्ष्मी नारायण शर्मा के नाम से जाना जाता था।

11 साल की उम्र में हुई शादी, साधु बनने को छोड़ा परिवार
उनका जन्म एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ। महज 11 साल की उम्र में ही नीम करोली बाबा का विवाह हो गया था। साल 1958 में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और पूरे उत्तर भारत में साधु की तरह घूमने लगे। इस समय वह लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा जैसे कई नामों से जाने जाते थे। गंजम में मां तारा तारिणी शक्ति पीठ की यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों ने उन्हें हनुमानजी, चमत्कारी बाबा के नाम से संबोधित किया करते थे। बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर वैवाहिक जीवन जीने के लिए घर लौट आए। वह दो बेटों और एक बेटी के पिता बने। ऐसा माना जाता है कि जब तक महाराजजी 17 वर्ष के थे, उनको इतनी छोटी सी आयु में सारा ज्ञान था। भगवान श्री हनुमान उनके गुरु हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन
जन्म : उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में, लगभग 1900 में
वास्तविक नाम : लक्ष्मी नारायण शर्मा
परिवार : ब्राह्मण परिवार से संबंध
शादी : 11 वर्ष की उम्र में शादी हुई, लेकिन बाद में घर छोड़ दिया
साधना : गुजरात में एक वैष्णव मठ में साधना की
नाम की उत्पत्ति : नीम करोली गांव में साधना करने के कारण उन्हें नीम करोली बाबा कहा जाने लगा

महत्वपूर्ण बातें
उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम, बाबा नीम करोली के आश्रम के रूप में जाना जाता है

हनुमान जी के भक्त
हनुमान जी के प्रति उनकी गहरी भक्ति के लिए जाने जाते हैं

आडंबरों से दूर
वे आडंबरों से दूर रहते थे और किसी को भी अपने पैर छूने नहीं देते थे

चमत्कार
उनके जीवनकाल में और मृत्यु के बाद भी कई चमत्कारों का अनुभव भक्तों ने किया

स्टीव जॉब्स और मार्क ज़ुकेरबर्ग
स्टीव जॉब्स और मार्क ज़ुकेरबर्ग ने भी नीम करोली बाबा के दर्शन किए थे

मृत्यु
11 सितंबर 1973 को वृंदावन में महासमाधि ली

आश्रम
नीम करोली बाबा के आश्रम भारत में कैंची, भूमियाधार, काकरीघाट, कुमाऊं की पहाड़ियों में हनुमानगढ़ी, वृन्दावन, ऋषिकेश, लखनऊ, शिमला, फर्रुखाबाद में खिमासेपुर के पास नीम करोली गांव और दिल्ली में हैं। उनका आश्रम ताओस, न्यू मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी स्थित है।

जब बिना टिकट सफर करते पकड़े गए बाबा
कहा जाता है कि एक बार बाबा ट्रेन में सफर कर रहे थे, लेकिन उनके पास टिकट नहीं था। जिस कारण टीटी ने उन्हें पकड़ लिया। बिना टिकट होने के कारण अफसर ने उन्हें अगले स्टेशन में उतरने को कहा। स्टेशन का नाम नीम करोली था। स्टेशन के पास के गांव को नीम करोली के नाम से जाना जाता है। बाबा को गाड़ी से उतार दिया गया और टीटी ने ड्राइवर से ट्रेन चलाने का आदेश दिया। बाबा वहां से कहीं नहीं गए। वह ट्रेन के पास ही एक चिमटा धरती पर लगाकर बैठ गए।

ऐसे मिला बाबा को नीम करोली का नाम
चालक ने बहुत प्रयास किया लेकिन ट्रेन आगे ना चली। तभी गाड़ी में बैठे सभी लोगों ने कहा यह बाबा का प्रकोप है। उन्हें गाड़ी से उतार देने का कारण ही है कि गाड़ी नहीं चल रही है। तभी वहां बड़े ऑफिसर पहुंचे, जो बाबा से परिचित थे। उन्होंने बाबा से क्षमा मांगी, ड्राइवर और टीटी से माफी मांगने को कहा। माफी मांगने के बाद बाबा ट्रेन में बैठ गए, लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि इस जगह पर स्टेशन बनाया जाएगा। ताकि उन गांववासियों को सहूलियत हो सके, ट्रेन के लिए मीलों चलकर आते थे। उन्होंने बाबा से वादा किया और वहां पर नीम करोली नाम का स्टेशन बन गया। यहीं से बाबा की चमत्कारी कहानियां प्रसिद्ध हो गई और इस स्थान से पूरी दुनिया में बाबा का नाम नीम करोली बाबा के नाम से जाना जाने लगा। यही से बाबा को नीम करोली नाम मिला था।

बाबा नीम करौली महाराज की श्रद्धेय शिष्य सिद्धि मां
बाबा नीम करौली महाराज की श्रद्धेय शिष्य सिद्धि मां

बाबा की उत्तराधिकारी बनीं अल्मोड़ा की सिद्धी मां
सिद्धि मां बाबा नीम करौली महाराज की आध्यात्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिन्हें उनकी अटूट भक्ति और समुदाय में योगदान के लिए जाना जाता है। अल्मोड़ा में जन्मी, वह 8 बहनों के परिवार में बड़ी हुईं। सिद्धि मां ने तुलाराम साह से विवाह किया, जो बाबा नीम करौली के एक समर्पित भक्त थे। अपने पति की मृत्यु के बाद, उन्होंने बाबा की सेवा करने की गहरी प्रतिबद्धता की और पूरी तरह से आध्यात्मिक साधनों को समर्पित कर दिया।

वर्ष 1973 में ब्रम्हलीन हुए बाबा
जब बाबा नीम करौली महाराज ने 1973 में ब्रह्मलीन स्थिति प्राप्त की, तो सिद्धि मां को उनका उत्तराधिकारी चुना गया और उन्होंने कैची धाम मंदिर का प्रबंधन संभाला। यह जिम्मेदारी उन्हें आध्यात्मिक समुदाय में एक महत्वपूर्ण भूमिका में रखती थी। भक्तों ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और अक्सर उनकी आध्यात्मिक स्थिति को बाबा के समान समझा। कहा जाता है कि बाबा ने ब्रह्मलीन होने से पहले उनके लिए एक पंक्ति लिखी थी “मां, आप जहां भी रहेंगी, वहां मंगल होगा।”

वृंदावन स्थित नीब करौरी बाबा का समाधि मन्दिर।
वृंदावन स्थित नीब करौरी बाबा का समाधि मन्दिर।

न्यू सैक्सिको सिटी और अमेरिका में हैं बाबा के आश्रम
1980 में सिद्धि मां ने ऋषिकेश में एक आश्रम स्थापित किया, जिससे बाबा नीम करौली महाराज की आध्यात्मिक पहुंच और बढ़ी। बाबा नीम करौली महाराज से जुड़े 108 आश्रम हैं, जिनमें कैंची धाम और न्यू मैक्सिको सिटी, अमेरिका का ताउश आश्रम महत्वपूर्ण हैं। 28 दिसंबर, 2017 को 92 वर्ष की आयु में उनके निधन के बाद कैंची धाम में सिद्धि मां का एक भव्य प्रतिमा स्थापित की गई और एक विशेष पूजा कक्ष का निर्माण किया गया।

 

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