– आईसीएस अफसर से बने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, 355 फैसलों और 1286 बेंचों का हिस्सा रहे
Justice Kailash Nath Wanchu, DDC : भारत के 10वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस कैलाश नाथ वांचू का नाम सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अनूठी शख्सियत के रूप में दर्ज है। यह बेहद दिलचस्प है कि जस्टिस वांचू के पास कानून की कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी, फिर भी वे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने और अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण फैसले दिए, जो आज भी याद किए जाते हैं।
जन्म और शिक्षा
जस्टिस वांचू का जन्म 1903 में मध्यप्रदेश में हुआ था और वे अपने परिवार के पहले जज थे। उन्होंने 1924 में इंडियन सिविल सर्विस (ICS) की परीक्षा पास की और फिर अपनी ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने क्रिमिनल लॉ के बारे में शिक्षा प्राप्त की और इसे आत्मसात किया।
सुप्रीम कोर्ट में यात्रा
जस्टिस वांचू का करियर एक आईसीएस अफसर के रूप में शुरू हुआ था। वे उत्तर प्रदेश में कलेक्टर के पद पर नियुक्त हुए, जहां उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में अपनी पहचान बनाई। 11 अप्रैल 1967 को, तत्कालीन CJI सुब्बाराव के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देने के बाद, जस्टिस वांचू को भारत के 10वें CJI के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 24 अप्रैल 1967 को पद संभाला और 24 फरवरी 1968 तक लगभग एक साल तक इस पद पर कार्य किया।
महत्वपूर्ण फैसले
अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस वांचू ने कुल 355 फैसले दिए और 1286 बेंचों का गठन किया। उनकी खासियत यह थी कि उन्होंने कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट के सामान्य रुख से अलग जाकर अपने फैसले दिए, जिनमें उनकी कानूनी सूझबूझ और साहस साफ नजर आता है।
उदाहरण के तौर पर, आईसी गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार केस में जस्टिस वांचू ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि संसद संविधान के किसी भी भाग को बदलने के लिए स्वतंत्र है, जबकि उस समय सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि संविधान के कुछ हिस्से जैसे मूलभूत अधिकारों में कोई बदलाव नहीं हो सकता।
आरक्षण पर जस्टिस वांचू का मत
एक और महत्वपूर्ण फैसला था साउदर्न रेलवे के जनरल मैनेजर बनाम रंगाचारी केस, जिसमें उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमत होकर अपना अलग रुख अपनाया। इस फैसले में उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण देने के पक्ष में निर्णय नहीं दिया, जो उस समय चर्चित हुआ।
कानूनी दृष्टिकोण और विरासत
जस्टिस वांचू के फैसले न केवल उस समय के लिए बल्कि आज भी भारतीय कानूनी व्यवस्था में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उनकी कड़ी मेहनत और साहसिक फैसले उन्हें भारतीय न्यायपालिका के सबसे सम्मानित जजों में से एक बनाते हैं। उनके कार्यकाल के बाद, जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने सीजेआई के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन वांचू के द्वारा किए गए फैसले आज भी भारतीय न्यायपालिका की दिशा को प्रभावित करते हैं।