– अर्जुनपुर ग्राम सभा में एक जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए पटवारी ने सांठ-गांठ कर लगाई गलत आख्या
Patwari sold the tree, DDC : हल्द्वानी में एक जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए पटवारी ने सांठ-गांठ की और कीमत के आड़े आ रहे पेड़ों का काटने पर सहमति जता दी। पटवारी की आख्या को आधार बनाकर आरोपियों ने 25 हजार रुपये में पेड़ का सौदा कर दिया और पेड़ पर आरी भी चल गई। एक जागरुक व्यक्ति ने हस्तक्षेप किया। मामला खुला तो प्रशासन हरकत में आया। अब पटवारी पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है।
ये मामला तीनपानी स्थित अर्जुनपुर ग्राम सभा के हरिपुर पूर्णानंद गांव का है। हम जिस पेड़ की बात कर रहे हैं वो श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास स्थित है। यहां एक पेड़ सेमल का और दूसरा सिरस का पेड़ है। मामले में आवाज उठाने वाले गजेंद्र पाल सिंह ने बताया कि दोनों पेड़ बंद हो चुकी सिंचाई नहर के किनारे और कृषि भूमि के सामने है।
पेड़ों की वजह से मुख्य सड़क की ओर जमीन एक तरह से बंद है। जिसकी वजह से जमीन बिकने में भी दिक्कत हो रही है और बिक भी रही है तो कम कीमत पर। आरोप है कि जमीन मालिक ने पटवारी के साथ सांठ-गांठ की। जमीन मालिक ने तहसीलदार के नाम के एक पत्र लिखा। कहा, उक्त पेड़ों की वजह से फसल व मकान को नुकसान पहुंच रहा है और पेड़ों का काटना चाहता है। पटवारी को मौके पर भेजा गया तो उसने भी यह साफ कर दिया कि पेड़ सरकारी भूमि पर नहीं है।
पटवारी की सहमति के बाद जमीन मालिक ने मकसूद रियासत के साथ पेड़ों का सौदा कर दिया। बीती 17 मई को मकसूद मजदूरों के साथ आरी लेकर मौके पर पहुंच गया और सेमल के पेड़ को काटना शुरू कर दिया। दशकों पुराने पेड़ को जड़ से काटना नामुम्किन था तो पहले उसकी छंटाई शुरू की। इसबीच गजेंद्र की शिकायत पर प्रशासन हरकत में आ गया। वन विभाग के लोग भी मौके पर पहुंच गए और पेड़ काटने पर रोक लगा दी गई। वन विभाग कटे हुए भारी-भरकम डाल पर एक संदेश भी लिख कर आया है।
“मामला संज्ञान में है। पटवारी के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की जा रही है। जल्द ही रिपोर्ट तैयार कर अधिकारियों को भेजी जाएगी।” -सचिन कुमार, तहसीलदार
तहसीलदार को दिए प्रार्थना पत्र में खसरा संख्या गायब
पूरे मामले में एक मजे की बात और है। अमूमन तो शिकायती या प्रार्थना पत्र में लिखे एक-एक शब्द को अधिकारी पढ़ता है, तब उस पर हस्ताक्षर और मुहर लगाता है, लेकिन पेड़ों को काटने की अनुमित मांगने वाले प्रार्थना पत्र पर गौर नहीं किया गया। जमीन मालिक ने जो प्रार्थना पत्र तहसीलदार के नाम लिखा उस पर सबकुछ लिखा, लेकिन यह नहीं लिखा कि पेड़ कहां काटना है। यानी खसरा संख्या दर्ज नहीं की गई, जहां पेड़ काटना था। बावजूद इसके प्रार्थना पत्र पर तहसीलदार के हस्ताक्षर भी हो गए और मुहर भी लग गई।
24 दिन गुजरे और कार्रवाई नहीं कर पाए अधिकारी
सेमल के पेड़ को काटने की साजिश डेढ़ महीने पहले रची गई। 17 मई को उसे काटना शुरू कर दिया गया और 17 मई को ही शिकायतकर्ता ने शिकायत की। सबसे पहले मौखिक सूचना एसडीएम को दी गई। एसडीएम ने तहसीलदार को निर्देशित किया और तहसीलदार ने काननूगो को निर्देशित कर दिया। जिसके बाद मौके पर पहुंच कर आवश्यक कार्रवाई की गई, लेकिन 17 मई से 24 दिन गुजर जाने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि पूरे मामले में कौन-कौन दोषी है। कटा पेड़ उठाने के लिए वन विभाग भी प्रशासनिक कार्रवाई के इंतजार में है।