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आंखें नोंच लेने वाली कुसुमा नाइन की खौफनाक कहानी, सलाखों में गुजर गई पूरी जवानी

– चंबल के बीहड़ में जिसका था आतंक, प्रेमी माधव मल्लाह ससुराल से उठा ले गया था बीहड़ों में

Chambal Ki Kusuma Nain, DDC : चंबल का नाम सुनते ही जुबां पर दस्यु सुंदरी फूलन देवी का नाम आता है, लेकिन चंबल के इसी बीहड़ में एक और दस्यू सुंदरी थी कुसुमा नाइन। ये वो कुसुमा नाइन है जो अपने दुश्मनों की आंखें नोंच लेती थी। ये वही है जिसने खौफ के दूसरे नाम फूलन देवी को पेड़ से बांध कर पीटा था। चूल्हे की जलती लकड़ियों से उसने अपने दुश्मनों की आंखें निकाली और 15 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून डाला। पिछले 20 सालों से इटावा जेल में अजीवन कारावास की सजा भुगत रही कुसुमा नाइन की सोमवार, 3 मार्च को लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में मौत हो गई। कुसुमा टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित थीं।

बाप प्रधान, 13 साल की उम्र कुसुमा को हुआ प्यार
कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। उनके पिता गांव के प्रधान थे। तेरह वर्ष की उम्र में गांव के एक युवक माधव मल्लाह से प्रेम संबंध के चलते उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया। माधव मल्लाह के साथ भागने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और परिवार ने उनकी शादी कहीं और कर दी। बाद में, माधव मल्लाह ने विक्रम मल्लाह के गिरोह में शामिल होकर कुसुमा को ससुराल से उठाकर चंबल के बीहड़ों में ले गया, जहां से कुसुमा की डकैत जीवन की शुरुआत हुई।

फूलन से दुश्मनी में की मल्लाहों की हत्या
चंबल के बीहड़ों में कुसुमा नाइन ने विक्रम मल्लाह के गिरोह में शामिल होकर अपराध की दुनिया में कदम रखा। वह हथियार चलाने में माहिर हो गई। उसकी क्रूरता के किस्से फैलने लगे। उन्होंने अपहरण, लूटपाट, हत्या जैसी कई जघन्य अपराधों को अंजाम दिया। उनकी दुश्मनी कुख्यात डकैत फूलन देवी से भी रही, जिसके चलते उन्होंने कई मल्लाहों की हत्या की थी।

65 साल की उम्र में टीबी ने ली जान
जून 2004 में कुसुमा नाइन ने मध्य प्रदेश के भिंड जिले में बिना शर्त आत्मसमर्पण किया। इसके बाद से वह इटावा जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रही थी। पिछले एक महीने से कुसुमा टीबी जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। 31 जनवरी को उसे सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया और 3 मार्च 2025 को उसकी लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में मौत हो गई। उसकी उम्र 65 साल थी।

कुसुमा की चिट्ठी से पिता पहुंचा दिल्ली
तेरह वर्ष की उम्र में स्कूल जाने के दौरान कुसुमा का माधव मल्लाह नाम से लड़के से इश्क हो गया। ये माधव के साथ घर से भाग गई। दो साल तक इसका कोई पता नहीं चला। इस बीच इसने अपने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह माधव के साथ दिल्ली के मंगोलपुरी में रह रही थी। सूचना मिलने के बाद इसके पिता पुलिस के साथ वहां पहुंच गए और कुसुमा को घर वापस ले आए। उसी दौरान माधव पर डकैती का मुकदमा दर्ज हो गया। पुलिस उसे तलाश कर रही थी और माधव अपने दोस्त कुख्यात डकैत विक्रम मल्लाह के पास चंबल के बीहड़ में शरण लेने पहुंच गया।

फूलन को पेड़ से लटका कर बंदूक की बट से पीटा
घर वापस लाए जाने के बाद कुसुमा के पिता ने उसका विवाह नजदीक के गांव के केदार नाई के साथ करा दिया। विवाह की जानकारी मिलते ही माधव मल्लाह बदले की भावना से भर उठा। इसने डकैतों के दल के साथ कुसुमा के ससुराल कुरौली गांव पर धावा बोल दिया। कुसुमा को अगवा कर बीहड़ ले गया। डाकुओं के साथ रहकर कुसुमा भी डकैतों के तौर तरीके सीख गई। इसी गैंग के साथ दस्यु सुंदरी फूलन देवी भी सक्रिय थी। कुसुमा और फूलन में झडप होने लगी। एक बार कुसुमा ने फूलन को पेड़ से लटकाकर राइफल की बटों से पीटा था। जिसका बदला लेने की फूलन ने भरपूर कोशिश की पर नाकाम रही।

प्यार का नाटक करते-करते कर बैठी प्यार
वक्त बीतने के साथ ही कुसुमा नाइन और फूलन देवी के बीच झगड़े बढ़ते चले गए। दोनों के बीच बढ़ती अदावत को हल करने के लिए डाकू सरगनाओं ने कुसुमा को व्यस्त करने की योजना बनाई। जिसके तहत फूलन देवी के दुश्मन डाकू लालाराम को ठिकाने लगाने का जिम्मा कुसुमा को सौंपा गया। योजना थी कि कुसुमा, लालाराम के साथ प्यार का नाटक करेगी और मौका मिलते ही मौत के घाट उतार देगी, लेकिन कुसुमा को असलियत में लालाराम से प्यार हो गया। फिर वह उसी के साथ उसके गैंग का हिस्सा बन गई। लालाराम से उसने हथियार चलाना, निशाना लगाना सीखा। फिर तो कुसुमा ने एक के बाद एक लूट, अपहरण और फिरौती की कई वारदातों को अकेले ही अंजाम देना शुरू कर दिया।

मां-बच्चे को जिंदा जलाया, लाइन में खड़ा कर 15 को मारी गोली
कभी लालाराम की प्रेयसी के तौर पर जाने जाने वाली कुसुमा का दबदबा उसके गैंग मे बढ़ता चला गया। लोगों को बेरहमी से पीटना, जिंदा जला देना या फिर आंखें निकलवा लेना कुसुमा का शगल बन गया था। इन हरकतों से उसके खौफ में इजाफा होता गया। 1984 में कानपुर के मईआस्ता गांव में डकैती के दौरान कुसुमा ने 15 लोगों को एक लाइम में खड़ा किया और ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर सबकी हत्या कर दी। एक मां और उसके बच्चे को जिंदा जला दिया। कहा जाता है कि फूलन द्वारा किए गए बेहमई कांड का बदला लेने के लिए ही कुसुमा ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। जिसके बाद से उसकी दहशत न सिर्फ ग्रामीणों में बल्कि डाकू गिरोहों में भी फैल गई।

मुखबिरी कर मरवाया पहला प्रेमी
एक के बाद एक तमाम वारदातो को अंजाम दे रही कुसुमा पुलिस के लिए तगड़ा सिरदर्द बन चुकी थी पर उसे पकड़ने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुईं। खौफ बढ़ने साथ ही कुसुमा की महत्वाकांक्षा भी बढ़ती चली गईं। फूलन देवी और डाकू विक्रम मल्लाह को लेकर उसके मन में चरम नफरत थी। मौका मिलते ही उसने लालाराम की मदद से डाकू विक्रम मल्लाह और माधव मल्लाह को मुखबिरी करके पुलिसिया मुठभेड़ मे ढेर करवा दिया। फिर कुसुमा ने फक्कड़ डकैत के गिरोह का दामन थाम लिया, जिसके बाद वह लालाराम से भी बेहद ताकतवर हो गई।

उपनिदेशक गृह रहे हरदेव आदर्श शर्मा का किया अपहरण
4 जनवरी, 1995 को इटावा के जुहरिया इलाके से पूर्व उपनिदेशक गृह रहे हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण कर लिया गया। उसके परिजनों से 50 लाख की फिरौती मांगी गई। इतनी रकम दे पाने में परिवार ने असमर्थता जताई तो कुसुमा गैंग ने शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी और शव को नहर में बहा दिया। इस घटना के बाद कुसुमा पर 35 हजार रुपये का इनाम रखा गया। 15 दिसंबर, 1996 को असेवा गांव के संतोष निषाद और उसके दोस्त राजबहादुर को कुसुमा ने अगवा करके बुरी तरह से पीटा और उनकी आंखें फोड़ दीं।

बोली, जंगल में रह रहे होते तो राज करते
कुसुमा के गिरोह ने यूपी में 200 और मध्यप्रदेश में 35 वारदातों को अंजाम दिया था। दो-दो प्रदेशों की पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा था। इसके बाद 8 जून, 2004 को कुसुमा और फक्कड़ बाबा ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले के दमोह थाने की रावतपुरा पुलिस चौकी पर पहुंचकर आत्मसमर्पण कर दिया। 30 अक्टूबर, 2017 को इटावा की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कुसुमा को शर्मा हत्याकांड में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब कोर्ट से निकलते वक्त कुसुमा ने फक्कड़ बाबा को घूरकर देखा और कहा कि तुम्हारी वजह से ही सजा हुई है, जंगल में रहते तो राज कर रहे होते। इस मामले में 7 और आरोपी बनाए गए थे। इसमें डकैत अरविंद गुर्जर के साथ सपा महिला प्रकोष्ठ की तत्कालीन जिलाध्यक्ष निर्मला गंगवार, मोहन, देवेंद्र, जौहरी कटियार उर्फ रामनरेश, रमाकांत दुबे, अशोक चौबे थे और ये सभी साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए।

फक्कड़ का दिल बदला तो बदल गई कुसुमा
जेल में कैद रहने के दौरान राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा ने अध्यात्म से नाता जोड़ लिया। उसे आदर्श बंदी के तौर पर पुरस्कृत भी किया गया तो वहीं, कुसुमा के हृदय परिवर्तन की बातें भी सामने आईं। जेल अफसरों के मुताबिक कुसुमा ने पूजा-पाठ शुरू कर दी। अनपढ़ होने के कारण दूसरे बंदियों से बारी-बारी रामायण और गीता पढ़वाकर सुनती थी। व्रत रखने भी शुरू कर दिए थे।

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