– हैरान कर रहे महिला हेल्प लाइन के आंकड़े, नई उम्र के लोगों को समझाना आसान, सालों रिश्तों का बोझ ढोने वाले नहीं होते तैयार
Married life is breaking down at an older age, DDC : कहते हैं पढ़े से गढ़ा अच्छा। यानी तजुर्बा जिंदगी की राह को आसान बनाता है, लेकिन दांपत्य जीवन में यही तजुर्बा सात जन्मों के बंधन को पल में तोड़ रहा है। महिला हेल्प लाइन से ये हैरान करने वाली बात सामने आ रही है। यहां कोशिश होती है कि दंपती के बीच का विवाद निपटा कर उन्हें फिर साथ रहने को राजी किया जाए और पुलिस इसमें कामयाब भी होती है, लेकिन इनमें ज्यादातर मामले उन लोगों के होते हैं, जिनकी शादी नई-नई होती है। जबकि पुराने बंधन को फिर बांधना पुलिस के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होता है। ये वो लोग हैं, जिन्हें रिश्तों का लंबा तजुर्बा हो जाता है।
महिला हेल्प लाइन के आंकड़ों पर नजर डाले तो लगभग हर माह 70 से ज्यादा मामले लेकर दंपति उनके पास आते हैं। वर्ष 2024 में ही 930 केस आए। ये केस पिछले वर्षों की तुलना में कम है। इससे पहले वर्ष 2023 में 1116 और वर्ष 2022 में 1175 मामले महिला हेल्प लाइन में आए थे। यानी पिछले तीन सालों में 3221 दंपतियों के बीच विवाद के मामले महिला हेल्प लाइन पहुंचे और इसमें से 1672 दंपतियों के बीच बात नहीं बनी और वह तलाक या हर्जा-खर्चा के लिए कोर्ट पहुंच गए।
आंकड़े बतातें है कि जो मामले तलाक या हर्जा-खर्चा के लिए कोर्ट पहुंचते हैं, उनकी उम्र 30-35 वर्ष से ऊपर की होती है। इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि वर्ष 2022 में 35 से 45 वर्ष के 35.8 प्रतिशत, 45 वर्ष के ऊपर के 10.21 प्रतिशत लोग आए। वर्ष 2023 में 35 से 45 उम्र के 37 प्रतिशत और 35 से 45 वर्ष के ऊपर के 11.61 प्रतिशत और वर्ष 2024 में 35 से 45 31 प्रतिशत और 45 वर्ष के ऊपर के करीब 12 प्रतिशत मामले महिला समाधान केंद्र पहुंचे।
मुश्किल होता है 30 की उम्र से ऊपर वालों को मनाना
ये वो लोग थे, जो अपने वैवाहिक जीवन के लगभग दो दशक पूरा कर चुके थे। महिला हेल्प लाइन प्रभारी सुनीता कुंवर का कहना है कि नव दंपति को समझाना सहज होता है और वह जल्द ही फिर से साथ रहने को राजी भी हो जाते हैं, लेकिन 30 या 35 साल के ऊपर वाले दंपती जल्दी समझने को तैयार नहीं होते।
तो क्या थक जाते हैं रिश्तों का बोझ उठाते-उठाते
आखिर ऐसा क्या है कि जिन्हें रिश्तों का तजुर्बा है उनमें से अधिकांश लोग अंत में अलग होने में ही भलाई समझते हैं। इसके बहुत सारे कारण हैं और कुछ कारणों में से प्रमुख अवैध संबंध और नशा है। माना जाता है कि जिन्हें दांपत्य जीवन का लंबा अनुभव है और उनके रिश्तों में एक अर्से से तल्खी बनी है। ऐसे लोग लंबे समय तल्खी के बीच अपने रिश्ते को कभी समाज के डर से तो कभी बच्चों का चेहरा देख कर बचाने की कोशिश करते हैं। पानी जब सिर के ऊपर गुजर जाता है तो वह पुलिस के पास पहुंचते हैं, लेकिन साथ रहने नहीं बल्कि तलाक और हर्जे-खर्चे के लिए। दंपती को ऐसा लगता है कि इनते वर्षों की तल्खी के बीच वह कभी आपसी सहमति नहीं बना तो आने वाले जीवन में शायद कुछ ठीक होना संभव भी न हो।
तीन वर्षों में इतने हुए राजी और इतनों पर मुकदमा
वर्ष कुल मामले राजीनामा मुकदमे हुए कोर्ट गए
2022 1 175 562 33 580
2023 1116 470 48 598
2024 930 412 24 494
कुल 3221 1444 105 1672
नोट : वर्ष 2025 के शुरुआती दो माह में 170 मामले सामने आए।
आज भी टिका रहता है संयुक्त परिवार में दांपत्य जीवन
पुलिस का कहना है कि संयुक्त परिवार की परिकल्पना हमेशा से बेहतर रही है। आज भी संयुक्त परिवार में रहने वाले पति-पत्नी के रिश्ते टिके रहते हैं। ऐसा नहीं है कि इनमें विवाद नहीं होते, लेकिन घर के बड़ों का तजुर्बा हमेशा अपने बच्चों के दांपत्य जीवन की ढाल बनकर खड़ा रहता है। जबकि ऐसा देखा गया है कि एकल परिवार में पति-पत्नी का हमेशा गुरूर टकराता रहता है। यदि दंपति काम-काजी है तो यह गुरूर और टकराता है और यदि पत्नी गृहणी है तो भी विवाद कम नहीं होते। संयुक्त परिवार में घर का काम-काज पूरे परिवार में बंट जाता है। जबकि एकल परिवार में गृहणी को सारा काम अकेले करना पड़ता है। इस पर अगर पति नशेड़ी हो तो फिर मामला पुलिस तक आ पहुंचता है।