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– महाकुंभ मेला 2025 में एक नई बहस का जन्म, हर्षा रिछारिया के संन्यासिनी अवतार पर विवाद

Harsha Richaria takes sanyaas form in Maha Kumbh, DDC : महाकुंभ 2025 में कई धार्मिक गतिविधियां और साधु-संतों की अनोखी घटनाओं के बीच एक घटना सुर्खियां बटोर रही है। हर्षा रिछारिया, जो एक मॉडल और अभिनेत्री हैं, निरंजनी अखाड़े के साथ संन्यासियों के रथ पर सवार हुईं और अमृत स्नान में भाग लिया। हर्षा ने इस अवसर पर भगवा वस्त्र पहने थे और बालों में नकली जटाएं भी लगाई थीं, जिससे वह “सबसे सुंदर साध्वी” के रूप में चर्चा का केंद्र बन गईं। अब उन्हें संतो की तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है।

संतों ने किया तीखा विरोध
हर्षा की इस गतिविधि पर संतों और धर्माचार्यों ने नाराजगी जताई। शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप महाराज ने इस घटना पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि धर्म को प्रदर्शन का हिस्सा बनाना समाज के लिए खतरनाक है। उनके अनुसार, एक मॉडल को धर्माचार्य के रथ पर बैठाना यह गलत संदेश देता है। स्वामी ने यह भी कहा कि साधु-संतों का कार्य त्याग और तपस्या होता है, न कि भोग और प्रदर्शन।

समाज में संतों की आस्था को कमजोर करने का खतरा
स्वामी आनंद स्वरूप महाराज ने चेतावनी दी कि यदि इस प्रकार के कृत्य जारी रहे, तो समाज में संतों के प्रति आस्था कमजोर हो सकती है। उन्होंने अन्य धर्माचार्यों से अपील की कि ऐसे कथित साधु-संतों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, ताकि धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ न हो सके।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का बयान
इस विवाद पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हर्षा रिछारिया ने रामनामी वस्त्र पहना था, और यह कोई अपराध नहीं है क्योंकि परंपरा में लोग संन्यास के अवसर पर भगवा पहनते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि संन्यास सिर्फ बाहरी वस्त्रों से नहीं मापा जा सकता। इसके लिए आंतरिक त्याग और तपस्या जरूरी है।

संतों का संदेश – सिर्फ कपड़े पहनने से संन्यासी नहीं बनते
महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने एक कटाक्ष करते हुए कहा कि “अगर कोई गधा बाघंबर पहन ले, तो वह बाघ नहीं बन सकता।” उनका कहना था कि केवल कपड़े पहनने से कोई संन्यासी नहीं बनता, बल्कि वास्तविक त्याग और साधना से ही व्यक्ति संत बनता है।

क्या है महाकुंभ में संन्यास की परंपरा?
महाकुंभ मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जहां लाखों श्रद्धालु आकर पवित्र संगम में स्नान करते हैं। यहां पर साधु-संतों का एक महत्वपूर्ण स्थान है और उनका जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक होता है। हालांकि, इस बार के महाकुंभ में हर्षा रिछारिया जैसी घटनाओं ने परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं पर सवाल उठाए हैं।

क्या आने वाले समय में इस पर कोई कार्रवाई होगी?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि धर्माचार्यों की अपील और संतों के विरोध के बाद इस मामले में कोई कार्रवाई होती है या नहीं। साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि क्या महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में प्रदर्शन और प्रचार की सीमा तय की जाएगी।

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