– लगातार PM थीं शेख हसीना, लेकिन देश के मिजाज को भांप नहीं पाई
BANGLADESH COUP, DDC : बांग्लादेश में कई हफ्तों से जारी सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को न सिर्फ इस्तीफा देना पड़ा, बल्कि देश भी छोड़ना पड़ गया। बांग्लादेश में रविवार (4 अगस्त) को बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। 13 पुलिसकर्मियों समेत करीब 94 लोग मारे गए। देश में कर्फ्यू लगा दिया गया और देश के एक बड़े हिस्से में इंटरनेट बंद कर दिया गया। हालांकि इससे हासिल कुछ नही हुआ, उल्टा रविवार की हिंसा के बाद विरोध और भड़क उठा। आखिर क्यों 15 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद हसीना देश के मिजाज को भांप नही पाईं।
300 से अधिक की हो चुकी है मौत
सोमवार को हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी कर्फ्यू के बावजूद ढाका की सड़कों पर उतर पड़े और शेख हसीना के इस्तीफे की मांग करते हुए उनके सरकारी आवास की ओर बढ़ने लगे। आखिरकार शेख हसीना ने ना सिर्फ इस्तीफा दिया बल्कि बांग्लादेश से भी निकल गई। बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शन पिछले महीने शुरू हुए थे और तब से वहां हुई हिंसा में लगभग 300 लोगों की जान जा चुकी है।
मुक्तियोद्धा परिवारों को आरक्षण बना गले की फांस
वर्ष 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश बनने के बाद से बांग्लादेश में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार हिंसा हुई है। बांग्लादेश में यूनिवर्सिटी छात्र शांतिपूर्वक सरकारी नौकरियों में आरक्षण को समाप्त करने की मांग कर रहे थे। वे चाहते थे कि नौकरियों में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए पाकिस्तान के खिलाफ मुक्तियुद्ध में हिस्सा लेने वाले मुक्तियोद्धाओं के परिवारों के लिए एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त किया जाए।
शेख हसीना के बयान से भड़के छात्र
1 जुलाई को वहां छात्रों ने धरना देना शुरू किया। शेख हसीना ने प्रदर्शनों को खारिज करते हुए कह दिया कि छात्र अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। यह आंदोलन उग्र होता गया और 19 जुलाई को वहां प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 67 लोगों की मौत हो गई। इसके दो दिन बाद, 21 जुलाई को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने भी नौकरियों में एक तिहाई आरक्षण के विरोध में फैसला दिया और आरक्षण की सीमा को घटाकर 5 प्रतिशत करने का फैसला सुनाया, लेकिन छात्र इससे संतुष्ट नहीं हुए।
सुलह के बजाय अपनाई दमन की नीति
छात्र वह इस आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करने की मांग करते रहे। सरकार के सख्त रवैये से उनकी नाराजगी और बढ़ती गई। देखते-देखते यह प्रदर्शन सरकार विरोधी प्रदर्शन में बदल गया। सरकार ने छात्रों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए सुलह की जगह दमन की नीति अपनाई और लगभग 10,000 लोगों को हिरासत में ले लिया।
हसीना के कार्यकाल में तेजी से बढ़ी अर्थव्यवस्था
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की बड़ी चर्चा होती है और वह दुनिया की सबसे तेजी से प्रगति कर रही अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। शेख हसीना के 15 वर्ष के शासनकाल में बांग्लादेश की तस्वीर बहुत बदली है, लेकिन बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति का लाभ सबको नहीं मिल रहा, जिससे वहां असमानता बढ़ रही है। एक अनुमान है कि वहां लगभग 1.80 करोड़ युवाओं के पास नौकरियां नहीं हैं। यूनिवर्सिटी से पढ़े छात्रों में बेरोजगारी की दर और भी ज्यादा है।
पढ़े-लिखों को नहीं मिला टेक्टटाइल जॉब
बांग्लादेश टेक्स्टाइल क्षेत्र में एक बड़ा नाम है और वहां बने रेडिमेड कपड़े सारी दुनिया में निर्यात होते हैं। इस उद्योग में लगभग 40 लाख लोगों को रोजगार मिला है, लेकिन इन नौकरियों में कॉलेजों के पढ़े-लिखे छात्रों के लिए संभावनाएं बहुत कम हैं। इन्हीं वजहों से बांग्लादेश में असंतोष बढ़ता जा रहा था और यही वजह है कि छात्रों का आरक्षण विरोधी आंदोलन सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया और शेख हसीना की सत्ता गिर गई।