– आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती नरेश ने फोन पर सुनाई भयावह कहानी, एवलांच ने कंटेनर उठाकर फेंका नदी में
Avalanche in Mana, DDC : चमोली के माणा में जिस बर्फीले तूफान (एवलांच) ने अभी तक चार लोगों की जान ले ली, उसी मौत के तूफान को नैनीताल के दो भाई मात देकर निकल आए। दोनों ने अपनी आंखों से उस भयावह मंजर को देखा, उससे जूझे, लड़े और फिर जिंदा निकल आए। दोनों अस्पताल में भर्ती हैं और सुरक्षित हैं। अमृत विचार के साथ फोन पर हुई बातचीत में एक भाई ने बर्फीले तूफान की भयावह दास्तां सुनाई।
शिवशक्ति विहार गली नंबर दो बरेली रोड हल्द्वानी निवासी नरेश बिष्ट (36 वर्ष) पुत्र धन सिंह बिष्ट पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और पिछले एक साल से वह बीआरओ के साथ मिलकर सड़क चौड़ीकरण के काम में लगे हैं। नीरज, रानी कंस्ट्रक्शन कंपनी में कार्यरत हैं। नीरज के साथ उनके चचेरे भाई दीक्षित सिंह बिष्ट (22 वर्ष) पुत्र आन सिंह बिष्ट भी माणा में ही काम करते हैं। शशबनी धारी मुक्तेश्वर नैनीताल निवासी दीक्षित मैकेनिक के पद पर कार्यरत हैं।
कंटेनर से बाहर देखा तो थम गईं सांसें
जोशीमठ के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती नरेश ने बताया कि माणा में मौसम गुरुवार से ही खराब था और लगातार बर्फबारी हो रही थी। वह अपने तीन साथियों के साथ गुरुवार रात कंटेनर में सो गए। सुबह करीब साढ़े 7 बजे जब उठे तो कंटेनर का दरवाजा नहीं खुला। कंटेनर के बाहर डेढ़ फीट से ज्यादा बर्फ गिर चुकी थी और इसी वजह से दरवाजा जाम हो गया था। किसी तरह दरवाजा थोड़ा सा खुला और बाहर का नजारा देखा तो सांसें थम गईं। बाहर तेज तूफान चल रहा था। उन्होंने सभी को कंटेनर के अंदर ही रुकने के लिए कहा। कुछ पल ही गुजरे थे कि तभी ऊंची चोटी से हिमस्खलन हो गया। तेज शोर के साथ पानी की तरह बहती टनों-टन बर्फ एक झटके में उनके कंटेनर को उड़ा ले गई।
तूफान की टक्कर से नदी के तट पर गिरा कंटेनर
उन्होंने बताया, बर्फ के तूफान ने इतनी जोरदार टक्कर मारी कि उनका कंटेनर करीब 60 मीटर दूर नदी के तट पर जाकर गिरा। नरेश के दो साथी गंभीर रूप से घायल हुए। जबकि उनके साथ मौजूद एक साथी चल पाने की स्थिति में था। बर्फीला तूफान शांत हो चुका था। बाहर शांति सुन नरेश अपने साथी के साथ बाहर निकले। वह इस स्थिति में नहीं थे कि अंदर बुरी तरह घायल साथियों की मदद कर पाते। लहूलुहान हालत में दोनों पैदल ही कई किलोमीटर पैदल चले। उन्हें आर्मी के कुछ लोग मिले, जिन्होंने उन्हें अस्पताल का रास्ता बताया। यहां प्राथमिक उपचार के बाद नरेश को एयरलिफ्ट कर जोशीमठ के आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया।
आंखों में गुजर गई रात, 24 घंटे बाद आया बेटे का पैगाम
नरेश की मां का नाम दुर्गा है और वह यहां अपने पति धन सिंह बिष्ट के साथ अकेली रहती हैं। हालांकि आस-पड़ोस में रिश्तेदार रहते हैं। शुक्रवार को एवलांस की खबर नीरज के परिवार ने टीवी पर देखी और जब माणा का नाम सुना तो पैरों तले जमीन खिसक गई। क्योंकि उनका बेटा भी वहीं था। उसका फोन बर्फीले तूफान में गुम हो चुका था, जिसके चलते मां की बेटे से बात नहीं हो पा रही थी। मन में अशुभ शंकाओं ने घर कर लिया तो आंखों से आंसू बहने लगे। गुरुवार का पूरा दिन और पूरी रात गुजर गई। टीवी में भतीजे को स्ट्रेचर पर ले जाते देखा तो माता-पिता की धड़कने और बढ़ गईं। हालांकि शनिवार सुबह सुकून भरी साबित हुई, जब बेटे नरेश की आवाज उसकी मां ने फोन पर सुनी। नीरज को हल्की चोंटे थीं। दुर्गा का कहना है कि पूरी रात वह सो नहीं पाईं। जैसे ही आंख लगती तो फिर खुल जाती।
बक्शानुमा कंटेनर में लुढ़कते चीखते और चिल्लाते रहे
नरेश ने बताया कि सबसे अच्छी बात यह थी कि कंटेनर जमीन पर सिर्फ रखे हुए थे। यही वजह थी कि जब बर्फ का तूफान कंटेनर से टकराया तो कंटेनर हवा में उड़ा और नदी के तट पर जा गिरा। यदि कंटेनर को जमीन से कस दिया गया तो शायद कोई जिंदा न बचता। क्योंकि तब कंटेनर कई फीट बर्फ के नीचे दब जाता और कंटेनर में सभी का दम घुट जाता। बर्फ के तूफान जब कंटेनर से टकराया तो बक्शानुमा कंटेनर में मौजूद लोग यहां-वहां लुढ़कते, कंटेनर में इधर-उधर टकराते बस चीखते और चिल्लाते रहे। नरेश का कहना है कि उनकी तरह आस-पास पांच और कंटेनर थे और सभी में मौजूद लोग इसी हालात से गुजर रहे थे।