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इस्लाम से पहले मक्का में होती थी अल्लाह की तीन बेटियों की पूजा

– अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा थीं अल्लाह की तीन बेटियां, तीनों की मूर्ति की होती थी पूजा

History of Ismail and the Three Daughters of Allah, DDC : इस्लाम के आने से पहले भी अरब के शहर मक्का में पूजा-पाठ थी, लेकिन ये पूजा इस्लाम के नियमों के एकदम विपरीत थी। इस्लाम से पहले मक्का में लोगों का मानना था कि अल्लाह की तीन बेटियां हैं। इनके नाम अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा थे। इन तीनों को देवियों के रूप में पूजा जाता था। मक्का के काबा के अंदर 360 मूर्तियां रखी गईं थीं। उस समय वहां पर साल के 360 दिन माने जाते थे। हर दिन के हिसाब से एक देवता की पूजा की जाती थी।

अल्लाह की तीन बेटियों अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा की भी पूजा की जाती थी। साथ ही इनके चित्र भी बनाए जाते थे। इन तीनों देवियों के मंदिर मक्का के पास ही थे। इन देवियों को कबीले के लोग बलि भी देते थे। उस समय मक्का का प्रभावशाली कुरैश कबीला देवी अल-उज्जा में बहुत विश्वास रखता था। यही वो कबीला है जिसमें पैगंबर मुहम्मद पैदा हुए थे। देवी मनात को मदीना के दो प्रमुख घराने औस और खजराज के लोग अपनी देवी मानते थे और उसकी पूजा करते थे। यहां तक की अरब के कुछ कबीले भी इन देवियों को अपनी कुल देवी मानते थे।

हुबल थे कभी काबा के मुख्य देवता
पैगंबर मुहम्मद ने जब खुद को अल्लाह का संदेशवाहक बताया उसके बाद उन्होंने इस्लामी शिक्षा का प्रसार शुरू किया। उन्होंने मक्का के काबा के अंदर रखी मूर्तियों का विरोध किया। साथ ही कहा कि बुतपरस्ती इस्लाम में हराम है। उनके अनुयायियों ने बाद में मक्का के अंदर रखी सभी मूर्तियों को हटा दिया। देवता हुबल को काबा का मुख्य देवता माना जाता था। उसकी मूर्ति को काबा पर कब्जा होने के तुरंत बाद तोड़ दिया था।

मुहम्मद ने जीता मक्का, फिर बंद हुई मूर्ति पूजा
इस्लाम में मक्का पूरी दुनिया में सबसे पवित्र शहर माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस्लाम के आने के बाद से ही मक्का और उसमें बने काबा का महत्तव बना। इस्लाम के आने से पहले भी अरब में मक्का शहर बड़ा व्यापारिक केंद्र था। यहां लोग दूर-दूर से व्यापार करने आते थे। साथ ही काबा धार्मिक आस्था का केंद्र था। पैगंबर मुहम्मद ने जब इस्लामी शिक्षा का प्रसार शुरू किया तो वहां के लोगों ने उनका विरोध किया और वह अपने अनुयायियों के साथ सन् 622 में शहर छोड़कर चले गए। उनके चाचा अबू-तालिब ने उनका साथ दिया। बाद में मुहम्मद के नेतृत्व में मुसलमानों ने सन् 630 में मक्का को जीत लिया। उसके बाद से ही मक्का में पूरी तरह मूर्ति पूजा बंद हो गई।

इसलिए इस्लाम में होता है मूर्ति पूजा का विरोध
इस्लाम के आने से पहले अरब के लोगों का मूर्ति पूजा में बहुत विश्वास था। उस समय अरब के लोगों ने अल्लाह के साथ उनके परिवार को भी माना था। यही विश्वास उनमें सबसे गहरा था। इस्लाम के आने के बाद इस मान्यता को बंद कराया गया। इसलिए आज भी इस्लाम को मानने वाले मूर्ति पूजा के सख्त खिलाफ होते हैं।

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