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छोटा कैलाश : भगवान शिव ने सतयुग में यहां रमाई थी धूनी, अनवरत है प्रज्जवलित
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छोटा कैलाश : भगवान शिव ने सतयुग में यहां रमाई थी धूनी, अनवरत है प्रज्जवलित

– भीमताल ब्लॉक के पिनरो गांव में पहाड़ की चोटी पर स्थित है छोटा कैलाश, महाशिवरात्रि पर उमड़ता है आस्था का संगम

Chhota Kailash, DDC : महाशिवरात्रि, शिव भक्तों का अहम पर्व और पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। भक्त विशेष धार्मिक अनुष्ठान और व्रत रखते हैं। शिवालयों में भक्तों का सैलाब उमड़ता है। देवभूमि में आस्था की अलग ही छठा दिखती है। ऐसा ही एक शिवालय है छोटा कैलाश, जहां भगवान शिव ने धूनी रमाई थी और तब से यहां अनवरत धूनी प्रज्जवति है। माना जाता है कि तब भगवान शिव, अध्रागिनी पार्वती के साथ भ्रमण पर निकले थे और इस पर्वत पर रुके थे।

पांडवों ने भी गुजारी थी इस पर्वत पर रात
नैनीताल जिले के भीमताल ब्लॉक के पिनरो गांव की ऊंची पर्वत चोटी पर स्थित इस शिवालय में पांडवों ने भी एक रात गुजारी और शिव की आराधना की थी। दुर्गम, लेकिन सुंदर पहाड़ी मार्ग और खड़ी चढ़ाई यहां भक्तों का इम्तिहान लेती है। छोटा कैलाश पहुंचने के लिए हल्द्वानी से सड़क मार्ग पर अमृतपुर, भौर्सा होते हुए पिनरों गांव तक पहुंचना होता है। पिनरों गांव तक आप अपने वाहन से जा सकते हैं, लेकिन इसके आगे 3 से 4 किलोमीटर प्राकृतिक खड़ी चढ़ाई है। चढ़ाई चढ़ने के बाद पर्वत की चोटी पर भगवान शिव का पुरातन मंदिर है।

कुछ दूर साथ चलती है गार्गी
रानीबाग में पुष्पभद्रा और गगरांचल नदी के संगम पर बने पुल को पार करते ही रास्ता पहाड़ के साथ चलने लगता है। थोड़ा आगे चलने पर गार्गी नदी कुछ दूर तक अमृतपुर से इस छोटी सी सड़क के साथ-साथ चलती है। दिल में मनोकामना रखने वाले भक्त इस मोटर रूट से पैदल चल कर भी शिव के दर तक जाते हैं। माना जाता है कि यहां भगवान शिव-पार्वती भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।

हाथ बंधवाकर खड़े होते हैं धूनी के आगे
सावन और माघ के महीने में यहां भक्तों की आवाजाही काफी बढ़ जाति है। शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला लगता है। यहां पर हजारों लोग रात भर रूककर अनुष्ठान करते हैं। शिवरात्रि के दिन कुछ भक्त अपने हाथ बंधवाकर रात भर धूनी के आगे खड़े होकर मन्नत मांगते हैं। इनमें से अगर किसी का हाथ स्वयं खुल जाये तो उसे धूनी के आगे से हटा दिया जाता है।

सतयुग में पार्वती संग छोटा कैलाश आए थे महादेव
छोटा कैलाश के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान महादेव यहां एक बार आये थे। अपने हिमालय भ्रमण के दौरान भगवान शिव तथा पार्वती ने इस पहाड़ी पर विश्राम किया था। महादेव के यहां पर धूनी रमाने के कारण ही तभी से यहां अखण्ड धूनी जलायी जा रही है। मान्यता है कि यहां पहुंचकर शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर घंटी और चांदी का छत्र चढ़ाते हैं।

भगवान शिव ने दिव्य शक्ति से बनाया पार्वती कुंड
बताया जाता है कि भगवान भोले ने यहां वास किया तो उन्होंने दिव्य शक्ति से यहां पर एक कुंड का भी निर्माण किया और इस कुंड को पार्वती कुंड कहा जाता है। इस कुंड में हमेशा पवित्र जल रहता था, लेकिन कहानी है कि किसी ने इस कुंड का अपवित्र कर दिया और कुंड सूख गया। इस कुंड तक तीन जलधाराएं पहुंचती थी, जो पहाड़ के तीन छोरों से आती थीं। हालांकि अब प्रशासन ने इस पवित्र कुंड को पुन: पुर्नजीवित करने का प्रयास किया है और यहां अब एक पक्का कुंड नजर आता है।

इसी पर्वत से शिव ने देखा था राम-रावण का युद्ध
छोटा कैलाश के बारे में एक मान्यता यह भी है कि त्रेता युग में भगवान शिव ने राम-रावण के युद्ध को इसी पहाड़ से देखा था। यह पहाड़ आस-पास स्थित सभी पहाड़ों में सबसे ऊंचा है। इसके साथ ही द्वापर युग में वनवास के दौरान पांडवों ने इस पर्वत चोटी पर एक रात गुजारी थी। इन्ही किवदंतियों के कारण लोगों की शिव के इस धाम के प्रति अपार आस्था है।

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