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शुएब ने गले मिलकर पहनी लाल टोपी और मतीन के पीठ में घोंप दिया खंजर
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शुएब ने गले मिलकर पहनी लाल टोपी और मतीन के पीठ में घोंप दिया खंजर

– समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रभारी ने बोले, अपने समाज के लिए कुर्बान की थी सीट, शुएब ने की गदद्दारी

उत्तराखंड सपा प्रदेश प्रभारी ने अखिलेश यादव को लिखा पत्र।
उत्तराखंड सपा प्रदेश प्रभारी ने अखिलेश यादव को लिखा पत्र।

SP’s Shuaib withdrew his nomination, DDC : राजनीति में न काहू से दोस्ती न दुश्मनी, लेकिन यहां दोस्ती भी दिल खोल कर निभाई जाती है और दुश्मनी में राजनीतिक कत्ल भी जाते हैं। दोस्ती में ऐसा ही छल समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रभारी हाजी अब्दुल मतीन सिद्दीकी के साथ हुआ। मतीन ने जिस दोस्त शुएब सिद्दीकी को अपने हाथ से समाजवादी पार्टी की लाल टोपी पहनाकर न सिर्फ पार्टी में शामिल किया, बल्कि अपने हिस्से की मेयर वाली कुर्सी भी उन्हें सौंप दी। उसी दोस्त ने गले मिलकर मतीन के पीठ में राजनीतिक खंजर घोंप दिया।

सिर्फ 1300 वोट से मेयर बनते-बनते रह गए थे मतीन
नैनीताल जिले में अब्दुल मतीन सिद्दीकी सबसे बड़े मुस्लिम नेता हैं। वह पहले भी हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम से मेयर का चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार तो वह सिर्फ 1300 वोट से मेयर बनते-बनते रह गए थे। हल्द्वानी में होने वाले किसी भी चुनाव में यहां के करीब 40 हजार मुस्लिम मतदाता उलट-फेर का माद्दा रखते हैं और मतीन के साथ कांग्रेस भी इस बात को अच्छे से समझती है। कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं के ताने-बाने में उलझी है और अच्छी तरह जानती है कि निकाय चुनाव में भाजपा बेहद मजबूत स्थिति में है।

कांग्रेस के लिए अहम मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण
अब राजनीतिक षड्यंत्र को समझें। कांग्रेस को अगर जीत चाहिए तो मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण उनके पक्ष में होना जरूरी है। मतीन को मनाना कांग्रेसियों के लिए मुश्किल था, लेकिन शुएब को नहीं। कांग्रेस से ललित जोशी प्रत्याशी हैं और शुएब के कॉलेज के जमाने से दोस्त हैं। इधर, समाजवादी पार्टी ने हाजी अब्दुल मतीन सिद्दीकी को मेयर पद के लिए अपना प्रत्याशी चुन लिया था। उन्होंने अपने बेटे के साथ नामांकन पत्र खरीदा और उसी दिन से राजनीतिक बिसात पर षड्यंत्र की रचना शुरू हो गई।

शुएब ने मतीन को दी थी निर्दलीय लड़ने की धमकी
शुएब भी समाजवादी पार्टी के पुराने सिपहसालार है, लेकिन मतीन से ज्यादा नहीं। मतीन ने नामांकन पत्र खरीदा तो शुएब ने उनसे बातचीत शुरू की। मतीन के घर कार्यकर्ताओं के लिए टेंट लगा तो शोएब उनके घर पहुंच गए। मतीन के सामने उन्होंने प्रस्ताव रखा। कहा, या तो वह उन्हें सपा से चुनाव लड़ाएं और अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। इससे सीधे तौर पर मतीन को मिलने वाले मुस्लिम वोटों में ही सेंध लगी। साथ ही यह भी वादा किया कि अगर वह उन्हें निकाय चुनाव लड़ने देते हैं तो वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह उनका समर्थन करेंगे।

मतीन को पता नहीं था और रचा जा चुका था षड्यंत्र
मतीन को पता नहीं था कि शुएब की इन बातों के पीछे कितना बड़ा षड्यंत्र रचा गया है। बहरहाल, राजनीतिक बातों के जाल में मतीन उलझते चले गए। उन्होंने न सिर्फ शुएब को पार्टी की लाल टोपी पहनाई बल्कि नामांकन कराने ढोल-ताशों की आवाज के बीच अपने साथ सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक गए। नामांकन के दौरान भी वह साथ रहे। शुएब ने 30 दिसंबर 2024 को लाल टोपी में नामांकन कराया और प्रचार-प्रसार में जुट गए। मतीन को भनक नहीं थी कि उनकी पीठ के पीछे क्या खेल चल रहा है।

बिना लाल टोपी अकेले पहुंचे नामांकन लेने
2 जनवरी 2025 (नामांकन वापसी की आखिरी तारीख) को अचानक शुएब सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय पहुंच गए, वह भी अकेले और बिना लाल टोपी के। उन्होंने नामांकन वापस लेकर सबको चौंका दिया और सबसे ज्यादा आघात लगा अब्दुल मतीन सिद्दीकी को। जिस वक्त यह सब हो रहा था, उस वक्त मतीन हाईकोर्ट में थे। नामांकन वापसी के वक्त सिटी मजिस्ट्रेट एपी बाजपेई ने शुएब से पूछा भी कि क्या उन्होंने मतीन से राय-शुमारी कर ली है। शुएब ने मतीन को फोन भी किया, लेकिन कोर्ट में होने की वजह से वह कॉल रिसीव नहीं कर पाए। हालांकि मतीन ने मैसेज जरूर किया था, लेकिन इसका जवाब शुएब ने नहीं दिया।

कांग्रेस की हार-जीत का फैसला करता है 40 हजार मुस्लिम मतदाता
यह वोटों का गणित समझिए। मुस्लिम बाहुल्य बनभूलपुरा का 40 हजार मतदाता हमेशा से कांग्रेस का समर्थक रहा है। पूर्व विधायक इंदिरा हृदयेश की यहां अच्छी बैठ थी और इन्हीं वोटों के बूते इंदिरा के बेटे सुमित हृदयेश भी विधायक बने। आज भी कांग्रेस की हार-जीत का फैसला यही मुस्लिम मतदाता करते हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस प्रत्याशी ललित जोशी को जीत की राह आसान करनी है तो इनके इकतरफा वोट की जरूरत है और ऐसा तभी हो सकता है, जब मुस्लिम समुदाय से कोई प्रत्याशी मैदान में न हो। वैसे भी हाल में हुई बनभूलपुरा हिंसा की वजह से बचे-कुचे मतदाता भी भाजपा खो चुकी है।

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