मां के मर्डर में काटा कारावास, बेटा बरी फिर किसने रेता गला?

– वर्ष 2020 में करायल जौसालास में हुआ था सेवानिवृत्त कैप्टन की पत्नी का कत्ल

Heera Devi murder case, DDC : जिस मां की हत्या में बेटे को कई महीने सलाखों के पीछे गुजारने पड़े, उसी हत्यारोपी बेटे को न्यायालय ने बरी कर दिया। ये शहर का चर्चित हत्याकांड था, जिसमें सेवानिवृत्त कैप्टन की वृद्ध पत्नी की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। पुलिस की लचर जांच, हत्या का प्रत्यक्षदर्शी न होना और परिवार में एक-दूसरे पर ही हत्या का दोष मढ़ना हत्यारोपी के बरी होने की वजह बना।

ये घटना 20 दिसंबर 2020 की है। हल्द्वानी कोतवाली क्षेत्र के करायल जौलासाल निवासी हीरा देवी पत्नी कैप्टन राजेंद्र सिंह शाही की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। वृद्ध हीरा की लाश उन्हीं के घर में मिली थी, जिसे सबसे पहले हीरा की बेटी अंजली उर्फ पूनम ने देखी। पूनम ने इसकी सूचना हल्दूपोखरा दरम्वाल आनंदपुर निवासी अपनी बहन मंजू सिंह पत्नी प्रेम पाल सिंह को दी। मंजू ने ही इस मामले में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया।

पुलिस मौके पर पहुंची और जांच के दौरान घर के जीने में मिले खून से सने कपड़े, जिससे गला रेता गया वो चाकू और बाथरूम में साबुनदानी पर मिले खून के धब्बे मिले। खून से सने कपड़े मृतका के बेटे राहुल उर्फ राजा के थे। पुलिस ने राहुल को गिरफ्तार कर लिया। न्यायालय के आदेश पर उसे जेल भेज दिया गया। राहुल के हाथों से बाल और अन्य साक्ष्य पुलिस ने फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे। जांच में खून और बाल हीरा के मिले, लेकिन कोर्ट में कहानी कुछ ही चल रही थी।

मामले में राहुल की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता राजन सिंह मेहरा फॉरेसिंक जांच से यह सिद्ध नहीं होता कि हत्या राहुल ने की। राहुल के हाथ और कपड़ों खून मिलने की वजह राहुल का अपनी मां के शव विलाप करना था। इसके अलावा कोर्ट में राहुल की बहनें भी एक दूसरे के खिलाफ ही हत्या का आरोप लगा रहे थे। अभियोजन ने अपने वाद को साबित करने के लिए 16 गवाह पेश किए, जिनका राजन सिंह मेहरा ने बारीकी से परीक्षण किया। राजन की पैरवी और नजीर को देखते हुए अपर जिला जज द्वितीय नीलम रात्र ने अभियुक्त राहुल शाही को दोष मुक्त कर दिया।

लापरवाह पुलिस ने नहीं लिए थे फिंगर प्रिंट
न तो पुलिस ने राहुल को गिरफ्तार करने में देरी की और न ही मौके पर मिले साक्ष्य फॉरेंसिक जांच भेजने में समय गंवाया। हालांकि लापरवाह पुलिस ने न तो राहुल के फिंगर प्रिंट लिए और न ही चाकू पर मिले अंगुलियों के निशान सुरक्षित किए। फॉरेंसिक रिपोर्ट से यह तो साबित हो गया कि कपड़ों पर मिले खून और राहुल के हाथ से मिले बाल हीरा के थे, लेकिन फिंगर प्रिंट न होने की वजह से हत्यारोपी को इसका लाभ मिला और वह बरी हो गया।

मानसिक बीमार ने काटी 7 माह की जेल
कानून कहता है कि किसी भी मानसिक बीमार या अन्य तरह से अस्वस्थ व्यक्ति को जेल नहीं भेजा जा सकता है। राहुल की पैरवी कर रहे राजन सिंह मेहरा ने बताया कि जब हत्या की घटना हुई, तब राहुल मानसिक तौर पर अस्वस्थ था, लेकिन पुलिस ने बिना मेडिकल कराए ही उसे न्यायालय पेश कर जेल भेज दिया। करीब 7 माह बाद अभियुक्त की जमानत हाईकोर्ट में लगाई गई। हाईकोर्ट के आदेश पर मेडिकल बोर्ड ने राहुल की मानसिक स्थिति की रिपोर्ट तैयार की। जिसके आधार पर उसे जमानत मिली।

तो फिर किसने रेता वृद्धा का गला
जिस दिन हीरा की हत्या हुई, उस दिन राहुल की बहनें भी घर में थीं। घटना स्थल पर हत्या के बाद लूटपाट भी नहीं की गई थी। इससे यह तो साफ है कि हत्या के पीछे कारण कुछ और ही था, लेकिन राहुल के बरी होने के बाद सवाल फिर वहीं आकर खड़ा हो गया है कि अगर राहुल ने हीरा की हत्या नहीं की तो आखिर उसका हत्यारा कौन है? कोर्ट में जिन्हें चश्मदीद गवाह कहा गया, उन्होंने भी हत्या होते हुए नहीं देखा था। जब तक हीरा जीवित थीं, तब तक उन्हें लेकर बहनों में भी खटपट बनी रहती थी।

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